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अंगपण्णत्ति नवमा प्रत्याख्यान नामक पूर्व चौरासी लाख पद प्रमाण है। इसमें नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आश्रय लेकर पुरुष के संहनन बल आदि के अनुसार परमितकाल और अपरमितकाल से बहुत से सावधों का प्रत्याख्यान किया जाता है । सावद्य वस्तु की निवृत्ति की जाती है। तथा उपवास की विधि, उपवास के भावना के भेद, पाँच समिति, तीन गुप्ति, विशुद्ध परिणामों के उपवास के फल का वर्णन होता है ।। ९५-९६-९७ ।।
विशेषार्थ प्रत्याख्यायक, प्रत्याख्यान और प्रत्याख्यातव्य यह तीन प्रकार का प्रत्याख्यान है।
गुरु के उपदेश से दोषों के स्वरूप को जानकर प्रत्याख्यान करने वाला प्रत्याख्यायक है।
सचित्त आदि वस्तु का त्याग करना प्रत्याख्यान है।
सचित्त आदि वस्तु तथा अयोग्य आहारादि त्याग करने योग्य वस्तु प्रत्याख्यातव्य है।
यह प्रत्याख्यान नामादिक के भेद से छह प्रकार का है ।
पाप के कारण भूत अयोग्य वस्तु का नाम उच्चारण नहीं करना योग्य नाम का उच्चारण करना तथा 'प्रत्याख्यान' इस नाम मात्र को नाम प्रत्याख्यान है। __ पाप बंध के कारण भूत तथा मिथ्यात्व आदि में प्रवृत्ति कराने वालो स्थापना को अयोग्य स्थापना कहते हैं । अयोग्य स्थापना का कृत, कारित, अदुमोदना से त्याग करना स्थापना प्रत्याख्यान है । ___ सावद्य वा तप की सिद्धि के लिए निरवद्य वस्तु को मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना द्रव्य प्रत्याख्यान है । अथवा जो मनुष्य प्रत्याख्यान विषयक आगम का ज्ञाता है परन्तु उसमें उपयुक्त नहीं है उसे आगम द्रव्य प्रत्याख्यान कहते हैं और जो भविष्य में प्रत्याख्यान विषयक शास्त्र का ज्ञाता होगा उसे नोआगमद्रव्य प्रत्याख्यान कहते हैं।
असंयम के कारणभूत क्षेत्र का मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना, अथवा जिस क्षेत्र पर प्रत्याख्यान किया है, वह क्षेत्र, क्षेत्र प्रत्याख्यान है।