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द्वितीय अधिकार श्रेष्ठ बैल, हाथी आदि की प्रशस्त गति में जो कारण होता है, वह प्रशस्त विहायोगति है।
ऊँट, गधा आदि की अप्रशस्त गति में जो कर्म कारण होता है, वह अप्रशस्त विहायोगति है।
शरीरनामकर्म के उदय में रचित शरीर का स्वामी एक ही जीव हो, वह प्रत्येक शरीर है। ___एक ही शरीर के बहुत से जीव स्वामी होते हैं, वह साधारण शरीर नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से जीव दो इन्द्रिय आदि जंगम (त्रस) जीवों में जन्म लेता है, वह त्रस नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से पाँच स्थावर में उत्पन्न होता है, वह स्थावर नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से अन्य प्राणी उससे प्रीति करते हैं, जो सबको प्यारा लगता है, वह सुभग नामकर्म है। __रूपवान, सौन्दर्यवान् होते हुए भी जिस कर्म के उदय से दूसरों को प्यारा न लगे, दूसरे उससे प्रीति न करें, वह दुर्लभ नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से अन्य जनों के मन को मोहित करने वाले मनोज्ञ स्वर हों, जिसका स्वर सबको कर्णप्रिय लगे, वह सुस्वर नामकर्म है।
जिसके उदय से कर्कश, अमनोज्ञ, कर्णकटु स्वर की प्राप्ति हो, वह दुःस्वर नामकर्म है।
जिसके उदय से देखने या सुनने पर प्राणी रमणीय प्रतीत हो, वह शुभ नामकर्म है। __ शुभ से विपरीत अशुभ है अर्थात् देखने व सुनने वाले को रमणीय प्रतीत नहीं होता है, वह अशुभ नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से अन्य जनों को बाधा नहीं देने वाला सूक्ष्म शरीर को रचना हो, वह सूक्ष्म शरीर नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से अन्य जीवों को बाधा कारक शरीर प्राप्त होता है, वह स्थूल नामकर्म है।
जिसके उदय से आत्मा अन्तर्मुहूर्त में आहारादि पर्याप्तियों को पूर्ण करने में समर्थ हो जाता है। पर्याप्तियों को पूर्ण कर लेता है उसे पर्याप्ति नामकर्म कहते हैं । आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, .