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द्वितीय अधिकार
१२३ सर्व अङ्ग और उपाङ्ग को छोटा बनाने में जो कारण होता है वह वामन संस्थान है।
सर्व अंगों और उपांगों को बेतरतीब हुण्ड की तरह रचना हुण्डकसंस्थान है।
जिस कर्म के उदय से अस्थिजाल ( हड्डियों के समूह ) का बन्धन विशेष होता है वह संहनन नामकर्म है। यह संहनन नाम छह प्रकार है ।
दोनों हड्डियों की सन्धियाँ वज्राकार हों। प्रत्येक हड्डी में वलय, बन्धन और नाराच हो, ऐसा सुसंहत बन्धन वज्रर्षभनाराच संहनन है।
सर्व रचना वज्रर्षभनाराच के समान है, परन्तु बन्धन वलय में रहित है, वह वज्रनाराच संहनन है।
जो शरीर वज्राकार बन्धन और वलय बन्धन के रहित तथा नाराच सहित है, वह नाराच संहनन है । ___ जो शरीर एक तरफ नाराचयुक्त तथा दूसरी ओर नाराच रहित अवस्था में है, वह अर्धनाराच संहनन वाला शरीर कहलाता है ।
जिसके दोनों हड्डियों के छोरों में कोल लगी है, वह कीलक संहनन
जिसमें भीतर हड्डियों का परस्पर बन्ध न हो, मात्र बाहर से वे सिरा, स्नायु, मांस आदि लपेट कर संघटित की गई हों, वह असंप्राप्तासपाटिका संहनन है। __जिसके उदय से आठ स्पर्श, पाँच रस, दो गन्ध और पाँच वर्ण होते हैं, वह स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से कठोरमदु, हलका-भारी, स्निग्ध-रूक्ष, शीत और उष्ण इन आठ प्रकार के स्पर्शों का प्रादुर्भाव होता है वह जिसके कारण शरीर में कर्कश, मृदु, चिकनापन, रूक्षपना, शीत, उष्णत्व, गुरु लघुत्व आदि का प्रादुर्भाव होता है, वह स्पर्श नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर में तिक्त्व, कटुत्व, कषायत्व, अम्लत्व और मधुरत्व इन पाँच रसों का प्रादुर्भाव होता है वह रस नामकर्म है ।
जिसके उदय से शरीर में गन्ध होती है वह गन्ध नामकर्म है । इसका सुगन्ध और दुर्गन्ध दो भेद हैं।
जिसके उदय से शरीर में वर्ण विशेष होता है वह वर्ण नामकर्म है। वह पाँच प्रकार का है। कृष्ण वर्ण, नील वर्ण, रक्त वर्ण, हरित वर्ण और. शुक्ल वर्ण। ...