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द्वितीय अधिकार प्रत्याख्यानी संशयवचनी इच्छानुलोमिका तच्च ।
नवमी अनक्षरगता एवं भाषाः प्ररूपयति ॥ पयाणि-१००००००६ इदि सच्चपवादपुव्वं गदं-इति सत्यप्रवादपूर्वं गतं ।
आमन्त्रणो, आज्ञापनी, याचनी, आपृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानो, संशयवचनी, इच्छानुलोम्नी, अनक्षरगता ये नव प्रकार की अनुभयात्मक भाषाएँ हैं। क्योंकि इनक सुनने वाले को व्यक्त और अव्यक्त दोनों ही अंशों का ज्ञान होता है ।।८३॥
द्वीन्द्रियाविक असज्ञिपंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों की भाषा अनक्षरात्मक होती है । ये सब ही भाषा अनुभव वचन रूप है। कारण यह है कि इनके सुनने से व्यक्त और अवयक्त दोनों ही अंशों का बोध होता है क्योंकि सामान्य अंश के व्यक्त होने से इनको असत्य भी नहीं कह सकते और विशेष अंश के व्यक्त न होने से इनको सत्य भी नहीं कह सकते । अतएव ये नव प्रकार के वाक्य अनुभव वचन कहे जाते हैं। इसी तरह के अन्य भी जो वचन हों उनको इन्हीं भेदों में अन्तर्भूत समझना चाहिए ॥ ८४ ।।
विशेषार्थ हे देवदत्त ! यहाँ आओ, इस तरह बुलाने वाले बचन को आमन्त्रणी भाषा कहते हैं।
यह मुझको दो, इस तरह के प्रार्थना वचन को याचनी भाषा कते हैं।
यह क्या है ? इस तरह के प्रश्न वचनों को आपृच्छनी भाषा कहते हैं। में क्या करूँ, इस तरह के सूचक वाक्यों को प्रज्ञापनी भाषा कहते हैं।
इसको छोड़ता हूँ इस तरह के छोड़ने वाले वाक्यों को प्रत्याख्यानी भाषा कहते हैं।
यह बलाका है अथवा पताका, ऐसे संदिग्ध वचनों को संशय वचनी भाषा कहते हैं।
मुझको भी ऐसा ही होना चाहिए ऐसी इच्छा को प्रकट करने वाले वचनों को इच्छानुलोम्नी भाषा कहते हैं।
इस प्रकार सत्य असत्य आदि के निर्णय करने का कथन करने वाले पूर्व को सत्यप्रवाद कहते हैं।