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अंगपण्णत्ति जिसको सुनकर कलह उत्पन्न हो जाय वह कलह वचन है । पीठ पीछे दोष प्रकट करना पैशून्य वा चुगलिभाषा है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ के सम्बन्ध से रहित यद्वा तद्वा प्रलाप करना अबद्ध प्रलाप वचन है।
जिसको सुनकर पंचेन्द्रिय विषयों में रति उत्पन्न होती है वह रति वचन है जिसे सुनकर विषयों में द्वेष उत्पन्न होता है उसको अरति वचन कहते हैं।
जिसको सुनकर श्रोता परिग्रह के अर्जन एवं रक्षण करने में आसक्त हो जाता है वह उपधि वाक् है।
जिन वचन को अवधारण करके जीव वाणिज्य आदि कार्यों में ठगने रूप प्रवृत्ति करने में चतुर हो उसे निकृति भाषा कहते हैं ।
जिन वाक्यों को सुनकर मानव गुणाधिक्य तपस्वी आदि में नम्रीभूत नहीं होता है उनका विनय नहीं करना उसे अप्रति वचन करते हैं।
जिन वचन को सुनकर प्राणी चोरी करने में प्रवृत्त होता है उन्हें मोष वचन कहते हैं।
जिनको सुनकर मानव समीचीन मार्ग में लगता है वह सम्यग्दर्शन भाषा है।
जिनको सुनकर प्राणी मिथ्यामार्ग में लग जाता है वह मिथ्या भाषा है।
वत्तारा बहुभेया वीदियपमुहा हवंति मूसवयो। बहुविहमसच्चवयणं दव्वादिसमासियं णेयं ॥ ८० ॥
वक्तारो बहुभेदा द्वीन्द्रियप्रमुखा भवन्ति मृषावाक् ।
बहुविधमसत्यवचन द्रव्यादिसमाश्रित ज्ञेयं ॥ दसविहसच्चं जणवद सम्मिदि ठवणा य णाम रूवे य । संभावणे य भावे पडुच्च ववहार उवमाए ॥ ८१ ॥
दशविधसत्यं जनपदं सम्मतिः स्थापना च नाम रूपं।
संभावना च भावः प्रतीत्य व्यवहारं उपमा ॥ जिनमें वक्तृत्व शक्ति उत्पन्न हो गई हो ऐसे दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीव वक्ता कहलाते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को अपेक्षा