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द्वितीय अधिकार तद्यथा । असत्यनिवृत्तिर्मोनं वा वाग्गुप्तिः। वचनसंस्कारकारणानि उरःकंठशिरोजिह्वामूलदन्तनासिकाताल्वोष्ठनामानि अष्टस्थानानि, स्पृष्टतेषत्स्पृष्टताविवृततेषद्विवृततासंविवृततारूपाः पंचप्रयत्ना वचनसंस्कारणानि । शिष्टदुष्टरूपो वचनप्रयोगः तल्लक्षणशास्त्रं संस्कृतादिव्याकरणं । द्वादश भाषा इदमनेनकृतमिति अनिष्टकथनमभ्याख्यानं नाम १ परस्परविरोधहेतुः कलहवाक् २ पृष्ठतो दोषसूचनं पैशन्यवाक् ३ धर्मार्थकाममोक्षासम्बद्धवचनमसंबद्धालापः ४ इन्द्रियविषयेषु रत्युत्पादिका या वाक् रतिवाक् ५ तेष्वरत्युत्पादिका या वाक् अरतीवाक ६ परिग्रहार्जनसंरक्षणाद्यासक्तिहेतु वचनं उपाधिवचनं ७ व्यवहारे वचनाहेतु निकृतिवचनं ८ तपोज्ञानादिषु अविनयवचनं अप्रणतिवचनं ९ स्तेयहेत वचनं मृषावचनं १० सन्मार्गोपदशकं वचनं सम्यग्दर्शनवचनं ११ मिथ्यामार्गोपदेशक वचनं मिथ्यादर्शन वचनमिति १२।
सत्य प्रवाद-जिसमें वचन गुप्ति, वाक्संस्कार के कारण वचन प्रयोग, बारह प्रकार को भाषा, अनेक प्रकार के वक्ता, अनेक प्रकार के असत्यवचन और दश प्रकार के सत्य वचन का वर्णन है वह छठा सत्यप्रवाद है। जीवों को ज्ञान कराने के लिए वचन पद्धति का एक करोड़ छह पदों के द्वारा मैं वर्णन करता हूँ या मेरे द्वारा सत्यप्रवाद का कथन किया जा रहा है ।। ७८-७९ ॥
असत्य नहीं बोलना, वचन संयम ( मौन ) धारण करना वचन गुप्ति है । शिर, कण्ठ, हृदय, जिह्वामूल, दाँत, नासिका, तालु और ओठ ये वचन उच्चारण के आठ स्थान हैं। अक्षरों के उच्चारण के कारण हाने से इनका वाक् वाक्संस्कार कारण कहते हैं। इसमें स्पष्ट, किंचित् स्पष्ट, विवृत, अविवृत और संविवृत रूप वचन उच्चारण करने के पाँच प्रयत्न हैं।
वचन उच्चारण करते समय कौन से शुभाशुभ वचनों का वहाँ प्रयोग करना चाहिये उसको वचन प्रयोग कहते हैं।
अभ्याख्यान वचन, कलह वचन, पैशुन्य वचन, अबद्धप्रलाप वचन, रति वचन, अरति वचन, उपधि वचन, निकृति वचन, अप्रणति वचन, मोष वचन, सम्यग्दर्शन वचन और मिथ्यादर्शन वचन के भेद से भाषा १२ प्रकार की है।
हिसादि पापों में प्रवृत्ति कराने वाली भाषा वा यह इसका कर्ता है। प्रकार अनिष्ट कथन करने वाली अभ्याख्यान भाषा है।