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द्वितीय अधिकार निमित्त से अवधिज्ञान होता है। विद्याओं को सिद्ध करके विद्याधर अनेक रूप विमान घर आदि बनाते हैं वह विद्या शक्ति है । इत्यादि सर्व शक्तियों का कथन जिसमें है वह वीर्यानुवाद है। उसके सत्तरलाख पद हैं। ।। इस प्रकार वीर्यानुवाद का कथन समाप्त हुआ ।।
अस्ति-नास्ति प्रवाद पूर्व का कथन सियअत्थिणत्थिपसुहा तेसि इह रूवणं पवादोत्ति । अत्थि यदो तो धम्मा अत्थिणत्थिपवादपुव्वं च ॥५२॥
स्यादस्तिनास्तिप्रमुखास्तेषां इह रूपणं प्रवाद इति ।
अस्ति......."अस्तिनास्तिप्रवादपूर्वं च ॥ 'णियदव्ववेत्तकालभावे सिय अत्थि वत्थुणिवहं च । परदव्ववेत्तकाले भावे सिय णत्थि आसित्ता ॥ ५३॥ निजद्रव्यक्षेत्रकालभावान् स्यादस्ति वस्तुनिवहं च ।
परद्रव्यक्षेत्रकालभावान् स्यान्नास्ति आश्रित्य ॥ सियअत्थिणस्थि कमसो सपरदव्वादिचउजुदं जुगवं। सियऽवत्तव्वं सेयरदव्वं खेत्तं च भावे च ॥५४॥
स्यादस्तिनास्ति क्रमशः स्वपरद्रव्यादिचतुर्युतं युगपत् ।
स्यादवक्तव्यं स्वपरद्रव्यं क्षेत्रं च भावं च ॥ कथंचित् अस्ति नास्ति की प्रमुखता से जिसमें प्रवाद ( कथन ) है वह अस्ति-नास्ति प्रवादपूर्व कहलाता है । जैसे-निज ( स्व ) द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा कथंचित् वस्तु का समूह अस्ति रूप है और पर द्रव्य, पर क्षेत्र, परकाल और परभाव की अपेक्षा वस्तु का स्वरूप कथंचित् नास्ति रूप है ।। ५२ ॥ ____ जब ( जिस समय ) स्व द्रव्यादि रूप प्रथम धर्म और परद्रव्यादि रूप द्वितीय धर्म यह दोनों धर्म क्रम से विवक्षित होते हैं उस समय कथंचित् अस्ति-नास्ति रूप कहलाता है। क्योंकि दोनों धर्म एक ही वस्तु में एक साथ हैं । अतः वस्तु स्यात् अस्ति-नास्ति रूप है ।। ५३ ।। ___ जिस समय स्वद्रव्यादि चतुष्टय और परद्रव्यादि चतुष्टय द्वारा युगपत् वस्तु विवक्षित होती है, उस समय स्याद् अवक्तव्य है। क्योंकि दोनों धर्मों का एक साथ कथन करने की शक्ति वचनों में नहीं हैं अर्थात् अनुभवगम्य