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अंगपण्णत्ति अपनी शक्ति विशेष को वीर्य कहते हैं। आत्मीय शक्ति दो प्रकार की क्षायोपशमिकी और क्षायिकी । अन्तराय कर्म के अत्यन्त विनाश से उत्पन्न आत्मा की अनन्त शक्ति क्षायिकी है, जिसका दूसरा नाम अनन्तवीर्य है। वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली जो शक्ति है वह क्षायोपशमिक शक्ति है । छद्मस्थ जीवों के क्षायोपशमिक शक्ति होती है और केवली भगवान् के क्षायिकी शक्ति होती है। अथवा वीर्य का दूसरा नाम शक्ति है । वह जीव और अजीव दोनों में है । प्रत्येक द्रव्य में ऐसी सामर्थ्य है कि वह कभी पर रूप नहीं होता है। द्रव्य के प्रत्येक गुण अपने में हो रहते हैं उनका पर गुण रूप परिणमन नहीं होता है। आत्मशक्ति आत्मवीर्य पुद्गल की शक्ति परवीर्य है।
दोनों की मिश्रण शक्ति उभयवीर्य है। जैसे आत्मा में अनन्तशक्ति है परन्तु छद्मस्थ आत्मा को यदि अन्नादि खाने को नहीं मिलता है तो शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है और शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाने से आत्मा का उत्साह बुद्धि आदि भी नष्ट हो जाती है अतः क्षायोपशमिक शक्ति उभय शक्ति है। ___ कुछ कार्य क्षेत्र की अपेक्षा होते हैं जैसे मोक्ष प्राप्ति कर्मभूमि से ही होती है । अन्य क्षेत्र से नहीं। कौन से क्षेत्र में कौन से फल-फूल धान्य उत्पन्न होने की शक्ति है वह सब क्षेत्र शक्ति है ।
कोई कार्य काल की अपेक्षा से होते हैं मोक्ष प्राप्त करने का काल जैसे चतुर्थ काल है, आठ वर्ष की अवस्था है उसके पहले मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती । अथवा सर्व फल-फूल धान्य शीत, उष्ण आदि काल को अपेक्षा से ही होते हैं । वह काल वीर्य है। ___ जीव के परिणामों की शक्ति भी विचित्र है, वीतराग मुनिराज के शान्त भावों का निमित्त पाकर जन्म-जात वैरी प्राणी भी अपने वैर को छोड़ देते हैं। निर्मल परिणामों से अशुभ कर्मों का अनुभाग क्षीण हो जाता है । दूसरे प्राणियों के अशुभ भावों के निमित्तवश सामने वाले के भाव भी वैसे हो जाते हैं। वह भाव वीर्य है।
तप शक्ति के प्रभाव से अनेक ऋद्धियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, दुःसाध्य कार्य भी सुसाध्य हो जाते हैं वह तप शक्ति है। __ प्रत्येक द्रव्य अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते। वह द्रव्यशक्ति है और प्रत्येक गुण पर रूप परिणमन नहीं करते हैं, वह गुण शक्ति है । पर्यायों को शक्ति पर्याय का निमित्त पाकर कार्य होता है-जैसे नरक, देव पर्याय का