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अनुयोगन्द्रिका टीका सत्र २४९ सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यनुगमनिरूपणम् ८६१ अति सूत्रस्पर्शकनियुक्तिस्तस्यास्तद्रूपो वा ऽनुगमः-एवं विज्ञेयः, यथाहि-सूत्रम् उच्चारयितव्यम् , कथमुच्चारयितव्यम् ? इत्याह-अस्खलितम् अमीलितम् अव्यत्या. प्रेडितम् प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्ण घोष कण्ठोष्ठविप्रमुक्तमिति । अस्खलितादिपदानामोंत्रैव द्रव्यावश्यकमस्तावे निरूपितस्तथैवात्रापि बोध्यः। अस्खलितादिपदैः सूत्रदोष
उत्तर--(सुत्तफासियनिज्जुत्ति अणुगमे) सूत्रस्पर्शकनियुक्ति अनुगम में सूत्र की स्पर्श करनेवाली नियुक्ति का व्याख्यान किया जाता है । इसलिये इसका नाम सूत्रस्पर्शनियुक्ति अनुगम ऐसा हुआ है। अथवा-सूत्रस्पर्शकनियुक्ति अनुगम में सूत्र को स्पर्श करनेवाला नियु. क्तिरूप अनुगम होता है। इसलिये इसका नाम सूत्रस्पर्शक नियुक्ति अनुगम है। यह इस प्रकार से जानना चाहिये-(सुत्तं सच्चारेयव्य) इसमें सर्व प्रथम सूत्रका उच्चारण किया जाता है-इसके उच्चारण करने की विधि इस प्रकार से है। (अक्खलियं अमिलिय, अवच्चामेलियं, पडिपुण्ण, पडिपुण्णघोसं कंट्ठोविप्पमुक्कं, गुरुवायणोवगयं) सत्र का उच्चारण अस्खलित हो, अमीलित हो, व्यत्याडित हो, प्रतिपूर्ण हो, प्रतिपूर्णघोषवाला हो; कंठोष्ठविषमुक्त हो, तथा गुरुवचनोपगत हो । इन अस्खलित आदि पदों की व्याख्या इसी आगम में द्रव्यावश्यक के प्रकरण में की जा चुकी है। सो उसी प्रकार से यहां पर भी वही व्याख्या संगतकर लेनी चाहिये । अस्खलित आदि पदों से सूत्र
उत्तर:---(सुत्तप्फासियनिज्जुत्ति अणुगमे) सूत्र:५४ नियुति अनुगममा સૂત્રને સ્પર્શ કરનારી નિક્તિનું વ્યાખ્યાન કરવામાં આવે છે. એથી આનું નામ સૂત્રસ્પશકનિયુક્તિ અનુગમ આ પ્રમાણે છે. અથવા સૂત્રસ્પર્શક નિયુક્તિ અનુગામમાં સૂત્રને સ્પર્શ કરનાર નિયુક્તિ રૂપ અનુગમ હોય છે, એથી આનુ નામ સૂત્રસ્પર્શ કનિર્યુક્તિઅનુગમ છે. मा प्रभारी वु नये (सुत्तं उच्चारेयव्वं) मेना स्याना विम मा प्रभारी छ. (अक्खलिय अमिलिय' अवच्चामेलिय' पडिपुणं, पडिपुण्णा. घेसिं कंठोढविप्पमुक्कं, गुरुवायणोवगय) सत्रनु प्यार मलित रीत હિય, અમીલિત હય, અવ્યત્યાગ્રંડિત હોય, પ્રતિપૂર્ણ હોય, પ્રતિપૂર્ણ શેષ યુક્ત હોય, કઠેષ્ઠ વિપ્રમુક્ત હોય, તથા ગુરુવચને પગત હોય. આ અખલિત વગેરે પદની વ્યાખ્યા આ આગમમાં જ દ્રવ્યાવશ્યકના પ્રકરણમાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવી છે. તે જિજ્ઞાસુઓ ત્યાંથી જાણીને અહીં તેની સંગતિ બેસાડી લેશે,