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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४४ आयनिक्षेपनिरूपणम्
टीका-से कि तं' इत्यादि
अथ कोऽसौ आयः ? इति शिष्यपश्नः। उत्तरयति-आया-आयः मामिलाम. इति पर्याया', स एष आयो नामायः स्थापनायो द्रव्यायो भावायश्चेति चतुर्विधः। एषां नामायादीनां सभेदानां व्याख्या पूर्ववत् स्वधिया कार्या । तथापि पदद्वयस्य व्याख्या क्रियते सरलमविसुबोधाय । तथाहि-सुवर्णरजतमणिमौक्तिकशङ्खशिला प्रवालरक्तरस्नसत्स्वापतेयस्य-तत्र-सुवर्ण हेम, रजतं'चान्दी' इति मसिद्धम् , मणिः
चन्द्रकान्तादिः, मौक्तिकम् 'मोती' इति प्रसिद्धम, शङ्ख:-रत्नविशेषा, शिलारत्नविशेषः, प्रवाला 'मूंगा' इति प्रसिद्धः रक्तरत्नपारागादिकम् , एतदूपं यत्
अथ सूत्रकार आयनिक्षेप का स्वरूप कहते हैं-- 'से कि तं आए' इत्यादि । शब्दार्थ-(से कि त आए?) हे मदन्त ! आयका क्या स्वरूप है।
उत्तर--(आए) 'आय' नाम 'प्राप्ति' का है। आय, प्राप्ति, लाभ, ये पर्यायवाची शब्द हैं। यह आय (च बिहे पण्णत्ते) चार प्रकार का कहा है। (तं जहा) जैसे (नामाए, ठवणाए, दवाए, भावाएं) नाम आय, स्थापना आय, द्रव्य आय और भाव आया सभेद इन नाम आय आदि की व्याख्या पूर्व की तरह अपनी बुद्धि से कर लेनी चाहिये। फिर भी पदव्य की व्याख्या सरल बुद्धिवाले शिष्यजनों के बोध निमित्त करता हूं-सुवर्ण-सोना, रजत-चांदी, मणि-चन्द्रकान्त
आदि मौक्तिक-मोती, शङ्ख-इस नामको रत्न विशेष शिला-विशेष प्रकार का रत्न, प्रबाल-मुंगा रक्तरत्न पनराग आदि, ये सब उत्सम
હવે સૂત્રકાર આયનિક્ષેપનું સ્વરૂપ કહે છે– 'से. कि त आए ?' इत्यादि। शहाथ-(से कि त आए) ! मायने ५१३५ है?
उत्तर-(आप) 'माय' नाम 'प्रालि' छ. माय, प्रालि, aim l सचा पर्यायवाची शो 2. माय, (चउविहे पण्णत्ते). या धरना
वामा मावस छे. (तजहा) रेभ (नामाए, ठवणाए, दवाए, भावाए) नाम આય, સ્થાપના આય, દ્વઆય અને ભાવય સભેદ આ નામ આય વગેરેની વ્યાખ્યા પર્વની જેમજ સ્વ બુદ્ધિથી સમજી લેવી જોઇએ છતાંએ પહઠયની વ્યાખ્યા સરલ બુદ્ધિવાળા શિષ્યાના બોધ માટે અહી ४२वा मावे छ. सुवर्थ-सानु, २०४-यी, मणि-य-ziत वगैरे भीत -माती, 4-0 नाभे २त्न विशेष, शिक्षा-२त्न विशेष, sala, ५२पाण