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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८५ भावप्रमाणनिरूपणम् गिरिः फुल्लकुटजकदम्बः । अत्र बहुव्रीहिसमासः। अयं हि अन्यपदार्थप्रधानों बोध्यः। तथा-धबलो वृषभो-धवलवृषभा, कृष्णो मृगः कृष्णमृग इत्यादिः कमें धारयो बोध्यः। समानाधिकरणस्तत्पुरुष एव कर्मधारयः। तथा-त्रीणि कटुकानि. समाहृतानि त्रिकटुकम् , त्रीणि मधुराणि समाहृतानि त्रिमधुरम् , इत्यादिः द्विपुः इस पर्वत पर कुटज और कदंष पुष्पित हैं, इसलिये यह गिरि फुटला कुटज कदंब" है। "फुल्लकुटजकदम्ब" यह पद बहुव्रीहि समास है। बहतीहि समास मे जो पद आते हैं:-उनका अर्थ नहीं लिया जाता, किन्तु उन पदों वाला जो होता है, ऐसा. अन्य पद लिया जाता है। क्यों कि यह समास अन्य पद प्रधान होता है । ( से तं बहुधीही समासे.) इस प्रकार यह बहुव्रीहि समास है। (से कि तं कम्मधारप) हे भदन्त ! कर्मधारय समास क्या है ?
उत्तर-(कम्मधारए धवलो वसही धवलवसहो, किण्हो मियो किण्हमियो, सेतो पडो सेतपड़ो, रत्तों पडो रत्तपडो, से तं कम्मधारये) कर्मधारय समास इस प्रकार से है-धवलो वृषभ:-धवलवृषभ, कृष्णो मृगः -कृष्णमृगः, श्वेतः पट:-श्वेतपटः, रक्तः पट:-रक्तपट: । समान अधिकरण वाला तत्पुरुष समास ही कर्मधारय समास कहलाता है। (से कि तं दिगु.समासे) हे भदन्त । विगु समास क्या है ? द्विगु समासः इस प्रकार से है-(तिणि कडुणाणि तिकडुगं, तिणि महुराणि तिमहुरं કુટજ અને કદંબ પુષ્પિત છે, એથી આ ગિરિ કુલ કુટજ કદંબ છે. “કુલ ફટજકદંબ? આ પદ બત્રીહિ સમાસ છે. બહુવીહિ સમાસામાં જે પદ આવે છે, તેનો અર્થ અભિપ્રેત ગણાતું નથી પણ તે પાવાળો જ હોય છે को अन्य ५४ अड ४२वामा भाव छ. म मा सभास अन्य पर प्रधान डाय . (सेत बहुव्वीही समासे) मा प्रभारी सामग्री सभास छ. (से किंत कम्मधारए) 3 मतभधारय समास छ ? -
उत्तर- कम्मधारए धवलो वसहो धवलवस्त्रहो, किण्हो मियो किण्हमियो, खेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो, से तं कम्मधारए) भधारय समास Aप्रभा छे. 'धवलो घृषभः धवल वृषभः, कृष्णो मृगः कृष्णमृगः: श्वेतः पटः श्वेतपटः, रक्तः पटः रक्तपट:'. समानाधिरा . तy३५ समास भधार ४ाय छे. (से कि त दिगु समासे) 3 !शु समास गट अ
उत्तर-(दिगुसमासे) विशुसमास मा प्रभारी डाय छे. (तिष्णि कडुणाणिं तिकडगे, तिमि महुराणि, विमर, विणि मुमाणि, वि गुणं, तिणि पुराणि