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अनुयोगद्वारसूत्रे तिवत् संभाव्यते । प्रथमायां नीलमुत्पलं-नीलोत्पलमितिवत् कर्मधारयश्च । एवं चात्र तत्पुरुषकर्मधारयसमासद्वयस्य संदेहो जायते, तन्न ज्ञायते, कं संमासं मनसिकृत्य भणसि । यदि तत्पुरुषेण भणसि तर्हि एवं मा मण । अयं भावा-यदि तत्पुरुषसमासं मनसि कृत्य 'धम्मे पएसे' इति सप्तम्या भणसि, तर्हि धर्मप्रदेशयोः भेदः प्रसज्येत, कुण्डे बदराणि इतिवत । अथ कर्मधारयेण भणसि ? तर्हि विशेस्तिकायरूप है यावत् जो प्रदेश एकजीवात्मक है वह प्रदेश नो जीव हैं, जो प्रदेश एक स्कंधात्मक है वह प्रदेश नो स्कंध है सो यह बात तुम्हारी नहीं बनती है। क्योंकि 'धम्मे पएसे' यहां दो प्रकार की इन पदों की संस्कृत छाया होनी संभावित है-एक 'धमें प्रदेशः' ऐसी और दूसरी 'धर्मः प्रदेशः ऐसी । इसलिये 'धम्म' पद में संशय होता है कि यह पद सप्तम्यन्त है या प्रथमान्त है । यदि इसे सप्तम्यन्त पद माना जावे तो, यहां सप्तमी तत्पुरुष समास होना चाहिये जैसे बने हस्ती-वनहस्ती में हुआ है । यदि 'धम्मे' पद को प्रथमान्त माना जाता है तो, प्रथमा में नीलमुत्पलम्-नीलोत्पलम् के जैसा कर्मधारय समास होना चाहिये । इस प्रकार तत्पुरुष और कर्मधारय ये दो समास होने का संदेह होता है । इसलिये यह पता नही पड़ता है कि-'तुम किस समास को मन में रखकर 'धम्भे पएसे' ऐसा कह रहे हो ?' (जह तप्पुरिसेणं भणसि. तो मा एवं भणाहि अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि) यदि कहो कि हम तत्पुरुष समास को आश्रित करके ऐसा सलाम छ । प्रदेश का छे. २ प्रदेश से धामा छ,
Pek छ, त मा तमाश पात योग्य ती नथी. भो "धम्मे or અહી બે પ્રકારની આ પદની સંસ્કૃત છાયા સંભવી શકે તેમ છે
में प्रदेशः" वी मन मी "धर्मः प्रदेशः" वी. मेथी "धम्मे" આ સંશય ઉપસ્થિત થાય છે કે આ પદ સમ્યન્ત છે કે પ્રથમાન છે જે ) ચમસ્થત પદ માનવામાં આવે છે, અહી સપ્તમી તપુરષ સમાસ
आय भई 'वने हस्ती-वनहाती" wi ये छे. 'धम्में"
मान्त मानवामां आवे तो प्रथमान्त "नीलमुत्पलम् नीलोत्पलम्" આ કર્મધારય સમાસ ચાગ્ય કહેવાય, આ પ્રમાણે તપુરુષ અને કર્મ, , આ બને સમાસ થવાથી અહી સંદેહાત્મક સ્થિતિ ઉપ્તન્ન થાય છે.
वात २५८ यता नथी , तम या समासना साधारे "धम्मे A २६॥छ ? (जइ तप्पुरिसेण भणसि, तो मा एवं भणाहि अह कम्मभणसि तो विसेसओ भणाहि) ने तमे सेम ४ा है अमे तस५
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