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अनुयोगचंन्द्रिका टीका सूत्र २०८ क्षेत्रपल्योपनिरूपणम् तद् व्यवहारिकं तद् यथा नाम पल्यं स्याद योजनम् आयामविष्कम्भेण, योजनम् उद्वेधेन तत्रिगुण सविशेष परिक्षेपेण । तत् खल्लु पल्यम् एकाहिकबैयहिकत्रयहिक थानद् भृतं वालायकोटीनाम् । तानि खल्लु वालाग्राणि नो अग्निदहेत, नों वायुहरेत् नो कुथ्येयुः, नो परिध्वंसेरन् , नो पूतितया हव्यमागच्छेयुः । ये खलु तस्य पल्यस्य आकाशपदेशा तालाः आस्पृष्टाः, ततः खलु समये समये एकमेहारिए य) १ सूक्ष्म क्षेत्र पल्पोपम और दूसरा व्यावहारिक क्षेत्रपल्यापम । (तत्थ गंजे से सहमे से ठप्पे) इनमें जो सूक्ष्म है, उसका कथन व्यावहारिक के बाद किया जावेगा-इसलिये उसे अभी नहीं कहा जाता है। (तस्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया) इनमें जो व्यावहारिक है, वह इस प्रकार से है-कल्पना करो-कोई एक पल्य हों (जोयणं आयामविखंभेणं जोयर्ण उव्वेहेणं) एक योजन लंबा एक योजन चौडा और एक ही योजन गहरा वह हो । (तं तिगुणं सविसेस परिक्खेवेणं) इस की वृत्त-परिधि कुछ अधिक तिगुणी हो । (से ण पल्ले एगाहिय बेयाहिय तेयाहिय जाव भरिए बालग्गकोडीण) इस पल्य की एक दिन दो दिन तीन दिन यावत् ७ सात दिन तक के बालाग्री से भरा हुआ हो। (ते णं बालग्गा णो अग्गी डहेज्जा जाब णों पूइत्ताए हन्धमागच्छेज्जा) ये वाला वहां इस रूप से भरे जावे कि-'जिन पर अग्नि वायु आदि का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ सकें और न ये. संडे गल सके । अब (जे णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहिं. बालग्गेहि क्षेत्र पस्यो५म अने भी व्यापारि पक्ष्या५म (तत्थ णं जे से सहमे से ठप्प આ સર્વેમાં જે સૂક્ષમ છે, તેનું કથન વ્યાવહારિક પછી કરવામાં અંજશે તતિ ण जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया) मामा रे व्यापारित माप्रमाणे छ. मेम वियर रे। 35 से ५६य डाय. (जोयणं ऑयामः विक्खंभेगं जोयण उव्वे हेण) ४ या Rin, 2 योजन पहाणा भने सर यार ' लाय. (तं तिगुण' सविसेसं परिक्खेवेणं) तेनी वृत्त-परिधि
पधारे मा डाय. (से णं पल्ले एगाहियबेयाहिय तेयाहिय जाव भरिए बालग्गकोडीण) मायने मे हिस, ये हस हस यावत् ७ सि अधीन। भासायीथी संपूरित डाय. (ते गं बालग्गा णो अग्गी डहेजा जाप णों पहत्ताए हव्व मागच्छेजा) 0 माताश्री मां से प्रभारी सरवामां आव જેમની ઉપર અંગ્નિ, વાયુ વગેરેની કેઈ પણ જાતની અસર થઈ શકે નહિં न ही नहिं मन मागणी शनडिं. ३ (जे गं तस्स पवस्व