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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुःस्थितिनिरूपणम् ३४१ उत्कर्षेण एकविंशत् सागरोपमाणि । विजयवैनयन्तजयन्तापराजितविमानेषु खलु भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रसप्ता?, गौतम ! जघन्येन एकत्रिंशत् सागरोपमाणि, उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि। सर्वार्थसिद्धे खलु भदन्त ! महा. विमाने देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता? गौतम! अजघन्यानुत्कर्षेण प्रयस्त्रिंशत्
सागरोपमाणि । तदेतत् सूक्ष्ममद्धापल्योपमम् । तदेतत् अद्वापल्योपमम् ।।सू०२०७।। • उपरितन अवेधक विमानों में देवों की स्थिति कितने काल
की मानी गई है? ( गोयमा! जहण्जेणं तीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण एकतीसं सागरोवमाई) हे गौतम! वहाँ पर देवों की स्थिति जघन्य तो ३० सागरोपम की और उत्कृष्ट ३१ सागरोपम की मानी "गई है। विजयवेजयंतजयंत अपराजियविमाणेसुण भंते ! देवाण केंवइयं काल ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त ! विजय, वैजयंत, जयंत, और अपराजित इन चार-विमानों में देवों की स्थिति कितनी कही गई है? (गोयमा जहन्नेण एक्कतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेण तेत्तीसं साग. रोवमाई) हे गौतम ! वहां पर जघन्य स्थिति तो ३१ सागरोपम की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति ३३ सोगरोपमकी है। सव्वट्ठसिद्धेण भंते ! महाविमाणे देवाण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भदन्त । सर्वार्थ सिद्ध नामका जो महाविमान है, उसमें देवों की स्थिति कितने काल की मानी गई है (गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसेण तेत्तीसं सागरोंवमाई) हे गौतम ! यहां पर देवों की स्थिति अजघन्य और अनुत्कृष्टरूप
थी ? (गोयमा ! जहणेण तीस सागरोवमाई, उक्कोसेण एकतासं सांग रोवमा) गौतम ! त्यो वानी धन्यस्थिति तो 30 सागरोपभनी भने
ge 31 सागरामनी अामा भावी छे. (विजयवेजयंतजयंतअपरा. जियविमाणेसु ण भते! देवाण केवइयं काल ठिई पण्णत्ता १)महत ! વિય. વૈજયંત, જયંત અને અપરાજિત આ ચાર વિમાનમાં દેવની स्थितिमी त थयेा छ १ (गोयमा ! जहन्नेण एक्कतीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई) 3 गौतम! त्या धन्यस्थिति तो 31 સાગરોપમની મધ્યમ ૩૨ સાગરોપમ જેટલી અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૩૩ સાગशपभReal वाम छे. (सव्वट्ठसिद्धेण भवे । महाविमाणे देवाण केवइयं काल ठिई पगत्ता?) BRET I साथ सिद्ध नाम महाविभान छ, wi वानी स्थिति ८ जनी जस थयेही छ १ (गोयमा ! अजहएणमणकोसेण वेत्तीसं सागरोबमाई) गीतम! वानी यति मन्य