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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४८ प्रकारान्तरेण त्रिनामनिरूपणम् ६७१ और "शिवरी" ऐसी होती है-गिरि शब्द वहां अजन्त पुल्लिङ्ग और शिखरिन् शन्द हलन्तपुल्लिङ्ग है। "विण्ह" यह शब्द ऊकारान्त पुल्लिङ्ग का है। इसकी संस्कृत छाया "विष्णु" ऐसी है। विष्णु शब्द यहां अजन्त पुल्लिङ्ग है। "दुमो" यह शब्द ओकारान्त पुल्लिङ्ग का है। इसकी छाया "द्रुमः" ऐसी है । यह शब्द वहां अकारान्त पुल्लिङ्ग है। स्त्रीलिङ्ग में प्राकृत आकारान्त माला शब्द है। संस्कृत छाया इसकी माला ही है। संस्कृत में भी यह शब्द अजन्त स्त्रीलिङ्ग ही है। प्राकृत भाषा में ओकारान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग नहीं माना जाता है। जैसे देवों आदि शब्द । ओकारान्त शब्द सब ही पुल्लिङ्ग है। लच्छी सिरी-कि जिनकी संस्कृ छाया लक्ष्मीः और श्री ऐसी होती है दोनों शब्द ईका. रान्त स्त्रीलिङ्ग हैं। ऊकारान्त जंबू बह शब्द प्राकृत में स्त्रीलिङ्ग हैं। संस्कृत में भी ये दोनों स्त्रीलिङ्ग में हैं। प्राकृत भाषा में नपुंसकलिङ्ग की निशानी अंई उ है। जिनके अन्त में ये अं इं उं होते हैं वे नपुंसकलिङ्ग माने जाते हैं। जैसे अस्थि अस्थि, महुं-मधु पील-पील। इस प्रकार सकृत छया " शिखरी" थाय छ, गुतीमा तन सय ५'त थायछे “विण्ह " मा ५६ शन्त पुदिन २ ३५ छ. तनी सत छाया " विष्णु" थाय छे. “दुमो” मा ५४ रात पुगिना ઉદાહરણ રૂપ છે. તેની સંસ્કૃત છાયા “ટૂમ થાય છે તેને ગુજરાતીમાં " वृक्ष" ४ छ सभा 'द्रुम' ५४ मत छ. सारान्त भोलि पनु हा "माला" ५६ छे. तेनी सतत छाय। ५५ 'माता' જ થાય છે સંસ્કૃતમાં પણ આ શબ્દ આકારાન્ત સ્ત્રીલિંગ જ છે પ્રાકૃતમાં આકારાન્ત શબ્દને સ્ત્રીલિંગવાળો ગણવામાં આવતું નથી જેમ કે “દે' अधां सन्त यह पुEिnाय छ “ सिरी भने लच्छी" मान्ने પદ ઈકરાન્ત સ્ત્રીલિંગનાં ઉદાહરણ છે તેમની સંસ્કૃત છાયા અનુક્રમે "श्री" भने “ लक्ष्मी" छे. सरतमा ५५ मा मने पहश्रीनिi or पहा . ऊ ४२रान्त " जंबू” भने “ बहू " म भन्ने पातमा सीसि जना શબ્દો છે સંસ્કૃત ભાષામાં પણ આ બન્ને શબ્દો સ્ત્રીલિંગ જ છે. જે શબ્દોના अन्त्याक्ष। “अं 'इं " य छ, ते शो नविना सराय छ
भ, “अत्थि" मा ५६ इंन्त, “ महुं" ५४ उसत भने "पोलं" मा ५६ उ शन्त भने 'धन्नं' मा ५६ अं १२-त नसलगना पो छे संस्कृतमा तमना मना पाय म " मधु", 'पीलु'