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अनुयोगवारस्य अंकारान्तः शब्दः 'धन्नं' इति विज्ञेयः । 'अत्थि' इति शब्द इंकारान्तो बोध्या। 'पील महुँ' चेति शब्द द्वयं उंकारान्तं बोध्यम् । एते अंकारान्तादयः शब्दा नपुं. सकलिङ्गा बोध्याः। लिङ्गत्रये य एते शब्दा उक्तास्ते सविभक्तिकाः माकृतशब्दा विज्ञेयाः प्रकृतमुपसंहरन्नाह-तदेतत् त्रिनामेति ॥सू० १४८|| कहते हैं-(भंकारंतं धन्न) अंकारान्त शब्द "धन्नं" हैं। (इंकारंतं नपुं सगं अत्थि) इंकारान्त शब्द "अधि" है (उंकारंतं पिलं महं च) और उकारान्त "पीलं" "महुं" हैं ये अंकारान्तादि शब्द (अन्ता) कि जिनके अन्त में "अं" "ई" "" ये वर्ण हैं वे (नपुंसगाणं) नपुंसकलिङ्ग हैं। तीनों लिङ्गों में जो ये उदाहरण कहे गये हैं वे विभक्तियुक्त प्राकृत शब्द हैं। (से तं तिणामे ) इस प्रकार यह त्रिनाम है।
भावार्थ-प्राकृत भाषा में तीन लिङ्ग हैं। उनमें जिन शब्दों के अन्त में "आ ई ऊ ओ" ये चार वर्ण हों वे पुल्लिङ्ग हैं-जैसे "राया" यह शब्द "संस्कृत में "राया" की छाया “राजन्” है। और यह वहां हलन्तपुल्लिङ्ग में नकारान्त शब्द है । "गिरी और सिहरी" ये दो शब्द इकारान्तपुल्लिङ्ग के उदाहरण हैं । संस्कृत में इन की छाया "गिरि" बिना (नान्यत२ जतिनi) पहाना हा२। मापे - (अकारान्तं धनं) "धन्नं" . पाहत ५६ अरान्त न विनु ५४ छे. (इंकारान्तं नपुंसगं अत्थि) “ अस्थि, 0 प्राकृत ५४ रान्त नपुस गर्नु ५६ छे. (उकारान्तं पीलुं महुं च) “ पोलुं” भने " महुं" पह। 'रान्त न:सबिना पढी छ. २ शहोने भन्ते म, , , " छे ते पहा (नपंसगाणं) नघुसविना काय छे, म पात तो पडेसां अट ४२१मां આવી ચુકી છે. ત્રણે લિંગનાં (જાતિના) આ જે પદના ઉદાહરણ આપपामा भाच्या छ, a विमतियुत प्राकृत शम्। छ. (से तं विणामे) मा પ્રકારનું ત્રિનામનું સ્વરૂપ સમજવું.
ભાવાર્થ-પ્રાકૃત ભાષામાં ઉપર્યુક્ત ત્રણ લિંગ હોય છે. જે શબ્દને अन्त " आ, ई, ऊ, ओ" मा या२ माना छ ५ १ हाय छ ते पह। पुलिस डाय छ रेभ मारान्त “राया" ५६ मा शनी संत छाया “राजम् ,' थाय छ तर शुभरातीमा "M" छ. ॥ शम मान्त लिनु हा २६ छे. " गिरी" भने “बिहरी" मा पहो Usad yanना 8२। ३२ मही १५२।यां छे. "गिरी" पात पनी संस्कृत छाया " गिरी" थाय छ, “सिहरी" भनी