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अनुगचन्द्रिका टोका सूत्र १३३ कालवारनिरूपणम् समवान स्थितिः, उत्कर्षेण चासंख्येयं कालं स्थितिः। अयं भावः आनुपूर्वी द्रव्याणां मध्ये त्रिसमपस्थितिकं द्रव्यं सर्वतो जघन्यं, तच्च त्रीन समयानेव तिप्ठति । अतो जघन्यतस्त्रिसमयं यावदानुपूर्वीद्रव्याणां स्थितिः। उत्कृष्टतस्तु असंख्येयं कालं स्थिति;ध्या । ततः परमेकेन तद्रूपेण परिणामेन द्रव्यावस्थान
उत्तर-(एगं दव्वं पडुच्च) एक आनुपूर्वोद्रव्य की अपेक्षा करके भानुपूर्णद्रव्यों की (जहण्णेणं) जघन्य से (तिणि समया) तीन समयकी स्थिति है, और (उकोसेणं) उस्कृष्ट से (असंखेनं कालं) असंख्यातकाल की स्थिति है। इसका तात्पर्य यह है । आनुपूर्वीद्रव्यों के बीच में तीन समय की स्थितिवाला द्रव्य सब से कम है यह तीन समय तक ही ठहरता है-रहता है। इसलिये आनुपूर्वीद्रव्यों की स्थिति जघन्य से तीन समय तक की कही गई है। और उत्कृष्ट से जो असंख्यात काल की स्थिति कही गई है उसका तात्पर्य यह है कि द्रव्य असंख्यात काल के बाद आनुपूर्वीरूप परिणाम से परिणमित
હવે સૂત્રકાર કાયદ્વારનું કથન કરે છે– "णेगमववहाराणं " त्या
शहाय-(णेगमववहाराणं) नेमण्यार नयस मत (आणुपुल्वीदव्वाई) समस्त भानुभूती द्रव्ये (कालो) णनी अपेक्षामे (केवचिचरं होई ) । સમય સુધી રહે છે?
उत्तर-(एगं दव्वं पडुच्च) मे भानु द्र०यनी अपेक्षा पियार १२पामा भावे, तो भानु द्र०यनी (जहण्णेणं तिण्णि समया) अन्य (माछामा पछी) मिति र समयनी ही मन (उकोसेणं असंखेज्जं कालं) Be (धारेभा पारे) स्थिति अप्यात जनी ही . मा કથનને ભાવ થે નીચે પ્રમાણે છે-જે આનુપૂર્વા દ્રવ્ય છે તેમાં ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળું દ્રવ્ય સૌથી ઓછું છે. તે ત્રણ સમય સુધી જ રહે છે, તે કારણે આનુપૂવી દ્રવ્યોની જઘન્ય સ્થિતિ ત્રણ સમયની કહી છે. તેની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ અસંખ્યાત કાળની કહેવાનું કારણ એ છે કે તે દ્રવ્ય અસંખ્યાત કાળ બાદ આવી રૂપ પરિણામ રૂપે પરિણમિત વહેતું જ નથી,