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अनुयोगचन्द्रिका टीका.सू० ५८ स्कन्धपर्याय निरूपणम् इदानीं स्कन्धस्य पयान् विवक्षुराह
मूलमू-तस्स णं इमे एगट्रिया णाणाघोसा णाणावंजणा एगट्रिया नामघेजा भवंति, त जहा-गणकाए य निकाए, ग्वधे वग्गे तहेव रासी य । पुंजे पिंडे निगरे, संघाए ओउलसमूह ॥१॥ से त खंघे ॥ सू० ५८॥
छ.या-ताय खलु इमानि एर्थिन नाना पाणि नानाव्यञ्जनानि एकार्थिवानि नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा-गणःकायश्च निकायः साधे। दर्गस्तथैव राशिश्च । पुनःपिण्डो निकरः संघात आकुलः समूहः ॥१॥ स एप स्कन्धः ॥५८॥ जानेवाली प्रमार्जना आदि क्रियाएँ हैं वे नोआगम हैं। यहां नो शब्द सर्वथा आगमाभाव का निषेधक नहीं हैं किन्तु एकदेश आगम का निषेधक है ? स्कंध पदार्थ का ज्ञान आगम और क्रिया अनागम नोआगम है। यह नोआगम को लेकर भावस्कंध का स्वरूप है।मत्र५७।
अब सूत्रमार स्कंध की पर्यायो या कथन करते हैंतरसणं इमे एगठिया इत्यादि ! ॥मत्र ५८॥
शब्दार्थ--(तम्स) इस स्कंध के (इमे) ये (णाणाघोमा) उदान आदि नाना घोपवाले (णाणावंजणा) ककार आदि अनेक व्यंजन वाले (एगटिया)-- एकाकि पर्यायवाची (नामधेज्जा भवंति) नाम हैं । (तं जहा) जो इा प्रकार से हैं-(गणकाए य निराए ग्वंधे, वग्गे नहेब गमी ॥ पुंजे पिंड निगरे संधाण आउलसमृहे ॥१॥ से त खघे) गणकाय, निकाय, बंध, वर्ग, गशि, पूज,
ઓ છે તે આગમ છે. અહીં ન’ શબ્દ સર્વથા આ માભાવના નિધધક નથી, પરનું એક દેશતઃ આગમને નિષેધક કે. સ્કન્ધ પદાર્થનું જ્ઞાન આગમરૂપ છે અને ક્રિયા અનાગમ-આગમરૂપ છે. આગમભાવસ્કર્ધાનું આ પ્રકારનું સ્વરૂપ છે. સુપછા
હવે સૂત્રકાર સ્કન્ધના પર્યાયવાચી શબ્દનું કથન કરે છે
"तस्स णं इमे एगट्रिया" त्याह
शहाय---(तास) ते २४-धना (इम) मा (णणो घोला) हात मा विविध घ mi (णाणावंजणा) ४४॥२ ll भने ०५/qui (एगट्टिया) मे . पर्यायवाची (नामघेज्जा भवंति ना ह्या छ. (तं जहा) में नामानीय प्रमा(गणकाए य निकाए खधे, वग्गे नहेव रासीय पुंज पिंड निगरे, ग्वंगण आउल समूहे ॥॥ से तं खंधे) , आय, निय, २४.५, ५५, राशि, पु, ष,