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अनुयोगद्वार
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चेव' इत्यादिना । तग्यव = स्कन्धस्यैव यो देश : = नखदन्तकेशादिलक्षणो भागः अपचितः=जीव प्रदेश र्विरहितो भवति तथा तस्यैव= स्कन्धस्यैव यो देश :- पृष्ठो दरकरचरणादिलक्षणो भाग उपचितः = जीव दशव्र्व्याप्तो भवति, सोऽनेकद्रव्यम्वन्धी बोध्यः । अयं भावः तयोर्यथोक्त देश यो विंइि. टेक. परिणामपरि तयो र्यो देहाख्यः समुदायः सोऽनेकद्रव्यरु कन्धः, सचेतनाचेतनानेकद्रव्यात्मकत्वादिति । अयमनेक द्रव्यस्कन्धः सामर्थ्यात्तुरगादिस्कन्ध एव प्रतीयते ।
ननु तर्हि कृत्स्नस्कन्धादस्य को विशेषः ? इति चे दुच्यते - कृत्स नस्कन्धस्तु शब्दार्थ - ( से किं तं .. .द.वि. खधे) हे भदन्त ! अनेक द्रव्यस्कंध का क्या स्वरूप है | ( अणे गदवियखंधे) उत्तर - अनेक द्रव्यस्कंध का स्वरूप जैसा है - वैसा - हम कहते हैं (तस्स चेत्र देसे अवचिए तम्स चैव देसे उवचिए) स्कंध का जो नख वेश दन्त, आदिरूप भाग है, वह अपनित - जी प्रदेशों से रहित - होता है, तथा उसी स्कंध का जो पृष्ट, उदर, कर, चरण आदिरूप भाग है, वह उपचित - जी प्रदेशों से व्याप्त रहता है ( से तं अणेगदवियखंधे) वह अनेक द्रव्यस्कंध है । इसका तात्पर्य यह है कि इन दोनों भागों का कि जो एक विशिष्ट आकार में परिणत रहते हैं. देहरूप समुदाय अनेक द्रव्यस्क है ।
क्योंकि यह समुदाय सचेतन और अचेतनरूप अनेक द्रव्यात्मक है | यह अनेक द्रव्यद्रस्कध सामर्थ्य से तुरगादिकध - हयादिस्बंध ही प्रतीत होता है। शंका- जब यह अनेक द्रव्यस्कंध हयादिकधरूप प्रतीत होता है तो शब्दार्थ (से किं तं अणेगद वियख दे ?) शिष्य गुइने सेवा प्रश्न रे દ્રવ્યન્કન્ધનું સ્વરૂપ કેવું છે?
છે કે હું ગુરૂ મહારાજ! અનેક
उत्तर---
-- ( अगदवियखं घे) अनंत द्रव्यन्धनु स्व३५ मा प्रभार ४ छे( स चैव देसे अवचिए तस्स चेव देसे उवचिए) २४न्धनो के नाम, ईश, हांत આદરૂપ ભાગ હોય છે તે અપચિત-જીવપ્રદેશેામાંથી રહિત-હેાય છે, તથા એજ સ્કન્ધના જે પૃષ્ઠ, ઉદર, હાથ, પગ આદિરૂપ ભાગા છે તેએ ઉપચિત-જીવ પ્રદેશેાથી व्याप्त-२ छ. (से त अणेगदवियख धे) मा प्रहार मनेय द्रव्यन्धनु स्व३५ છે. આ કથનનુ તાત્પર્ય એ છે કે તે બન્ને ભાગા (અપચિત અને ઉપચિત ભાગે) કે જે એક વિશિષ્ટ આકારે પરિણત થઇને તેમના જે દેહરૂપ સમુદાય બને છે તેને અનેકદ્રયસ્કન્ધ કહેવામાં આવે છે કારણ કે તે સમુદાય સચેતનરૂપ અને અચેતન રૂપ અનેક દ્રવ્યાત્મક હોય છે. આ અનેક દ્રવ્યસ્કન્ધ તુરગાદિસ્ક ધ (અન્વાદિસ્ક )
સમાન જ લાગે છે.