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अनुयोगदारो छाया--अथ किं तद् ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुतम् ? ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुतंश्रुतेति पदार्थाधिकारज्ञायकस्य यत् शरीरकं व्यपगतच्युतच्यावितत्यक्तदेहं तदेव पूर्वभणित भणितव्यं यावत, तदेतत् ज्ञारकशरीरद्रव्यश्रुतम् ॥सू० ३६॥ टीका-से किं तं जाणयसरीरदयसुर्य' इत्यादि । व्याख्या पूर्ववत् ॥१० ३६॥
ज्ञायकशरीर द्रब्यश्रुत का क्या स्वरूप है-इस बात को सूत्रकार स्पष्ट करते है-“से किं तं जाणयसरीरदब्बसुयं” इत्यादि ॥१० ३६॥
शब्दार्थ-से कि त जागयसरीरव्वसुम) हे भदन्त (ज्ञायशरीर द्रव्य अत का क्ण स्वरूप है ?
. उत्तर--(सुयत्तिपयत्थाहिगारजागरस्स) श्रुत शब्द वाच्य आगम के अर्थ रूप अधिकार के ज्ञाता का ऐसा (सरीरय) शरीर (4) जो (ववगयचुय चावियचत्तदेहं) व्यपगत-चैतन्य पर्याय से रहित हो चुका है, च्युत-वंश प्रकार के प्राणों से परिवर्जित हा गया है, च्यावित-बलिष्ठ आयुक्षय के कारणों से प्राण रहित हो गया है। त्यक्तदेह आहार परिणति जनित वृद्धि जिससे सर्वथा निकल चुकी है (जाणयसरी व्वसुयं) ज्ञायकशरीर द्रश्रुत है। (तं चेव पुत्वभणिय) यहां पर १७ में पत्र कथित इस विषय संवन्धी इस व्यपगत आदि पाठ से आगे (जाव से त आण सरीरदबाय) ज्ञायकसरीर द्रव्यश्रुत का पाठ (भाणियध्वं) ग्रहग करलेना चाहिये। इसकी (याख्या १७ वे सूत्र में कही गई हैं। ॥ सूत्र ३६ ॥
હવે સૂત્રકાર જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્યથુનના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરે છે
"से किं तं जाणयसरीरद सुय" इत्यादि
शा-(से किं तं जाणयसरीन्दव्यसय?) शिष्य शुरुन सेवा प्रश्न પૂછે છે કે હે ભગવન્! જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્યશ્રતનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(सुयत्ति परत्याहिगारजाणयस्स) श्री शहना पाय सेवा भाग भना मथ३५ मबिना ज्ञातानु (सरी य) २ (ज) ३ रे (व-गयचुय चावियचत्तदेह) व्यपात २४ युयुछ चैतन्य पर्यायथी 81 ७ युयु छ, યુત થઈ ચુક્યું છે દસ પ્રકારના પ્રાણથી રહિત થઈ ચુકયું છે, થ્યાવિત થઈ ચુકયું છે, બલિષ્ઠ આયુક્ષયના કારણથી પ્રાણુરહિત થઈ ચુક્યું છે, ત્યકતદેહ થઈ ચુકયું છે આહાર પરિણતિ જનિત વૃદ્ધિ જેમાંથી સર્વથા નીકળી ચુકી છે (जाणयसरीरदब्वसुयं) मेवां शरी२ने 'ज्ञाय शरीर द्रव्यश्रु' ३५ अपामा भावे छ. (त चेव पुश्वं भणिय) मही १७मा सुत्रमा थित मा विषय धीमा 044nd All ५४थी ५३ ४शने (जाव से तं जाणयसरीरदव्वसुय) ज्ञाय. शरीर द्रव्यश्रत पर्यन्तन। ५७ (भाणियब) अ ४२ नये. ती ०याभ्या ૧૭માં સુત્રની વ્યાખ્યા પ્રમાણે સમજવી જોઈએ. સ. ૩૬