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________________ = प्रभुवीर की श्रमण परंपरा प्रभु वीर की श्रमण परंपरा “प्रभ वीर की श्रमण परंपरा" यानी श्रमण भगवान महावीर से आज तक का श्रमण प्रवाह। इसमें श्रमणों के तप, जप, ज्ञान आदि गुणों की विशिष्टता के कारण पड़े विभिन्न नामों का वर्णन दिया गया है। श्रमण भगवान महावीर के समय में नौ गण और ग्यारह गणधर थे। जिन जिन साधुओं की वाचना एक साथ होती है, वह एक गण कहलाता है। प्रथम के सात गणधरों की वाचनाएं अलग-अलग होती थी। उनकी द्वादशांगी अर्थ से समान थी लेकिन सूत्रों से भिन्न-भिन्न थी। आठवें और नौंवें गणधर तथा दसवें और ग्यारहवें गणधरों की द्वादशांगी सूत्र-अर्थ दोनों से समान होने के कारण उनके शिष्यों की वाचनाएँ साथ-साथ होती थी। इस तरह श्रमण भगवान महावीर के समय में ग्यारह गणधर और नौ गण थे। जिसमें सूत्र एवं सामाचारी का भेद होते हुए भी सिद्धान्त भेद नहीं था। श्रमण भगवान महावीर स्वामी के मोक्षगमन के पूर्व ही नौ गणधर मोक्ष पधार गये थे। इस कारण इनकी शिष्य परंपरा पंचम गणधर सुधर्मा स्वामीजी की निश्रा में आ गई थी। प्रभु वीर के निर्वाण के बाद जब गौतमस्वामीजी का निर्वाण हआ तब उनकी शिष्य परंपरा भी सुधर्मास्वामीजी की निश्रा में आयी। अतः तब से श्रमण परंपरा सुधर्मा स्वामीजी से प्राप्त सूत्र-सामाचारी-सिद्धान्त को एक रूप से मानने लगी। इस कारण श्रमण परंपरा सुधर्मास्वामीजी की कहलाती है। RAOKe 6
SR No.036510
Book TitlePrabhu Veer Ki Shraman Parmpara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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