SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभुवीर की श्रमण परंपरा (वि. सं. 1213), सार्ध पुनमिया (वि. सं. 1236), आगमिक (वि. सं. 1250) आदि गच्छ-मत निकले। RER 2. इसी प्रकार से बीसवीं सदी में भी तपागच्छ में से ही शास्त्रीय एवं सुविहित पूर्वाचार्यों की परंपरा से चली आ रही चार स्तूति की मान्यता से भिन्न ऐसी त्रिस्तुतिक की मान्यता को लेकर श्रीमद् राजेन्द्रसूरिजी से बृहत्सौधर्मतपागच्छ के नाम से त्रिस्तुतिक मत निकला। अ) देखें-ललित विस्तरा, चैत्यंवदन भाष्य-संघाचार टीका, प्रतिक्रमण गर्भ हेतु आदि में चार स्तुति की शास्त्रियता। ब) देखें- प्रवचन सारोद्धार, सेन प्रश्न आदि में चार स्तुति विषयक पूर्वाचार्यों की सम्मति। 3. अभी पुनः शासन एकता हो सकती है!!! देखें परिशिष्ट 1 / 15
SR No.036510
Book TitlePrabhu Veer Ki Shraman Parmpara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy