SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभुवीर की श्रमण परंपरा में भी ऐसी घटनाएँ बनीं। महावीर प्रभ को तीर्थंकर पद प्राप्त होने के बाद 14वें और 20 वें वर्ष में क्रमशः जमाली और तिष्यगुप्त को श्रमण संघ से बहिष्कृत किये जाने के प्रसंग सूत्रों में उपलब्ध हैं। ऐसे व्यक्तियों को 'निह्नव' के नाम से उल्लिखित किया है। औपपातिक, स्थानांग सूत्र एवं आवश्यक नियुक्ति में इनकी संख्या 7 होने का निर्देश है। 1. वीर प्रभु के तीर्थंकर पद से 14 वें वर्ष में जमाली ने 'बहुरत' मत चलाया। 2. वीर प्रभु के तीर्थंकर पद से 20वें वर्ष में तिष्यगुप्त ने ‘जीव प्रदेश' मत चलाया। 3. वीर निर्वाण संवत् 214 में आषाढ़ाचार्य के शिष्यों ने ‘अव्यक्त मत' चलाया। 4. वीर निर्वाण सं. 320 में आर्य महागिरिजी के पंचम शिष्य कौडिन्य के शिष्य अश्वमित्र ने 'सामुच्छेदिक (शून्यवाद)' मत चलाया। 5. वीर निर्वाण सं. 328 में आर्य महागिरिजी के शिष्य धनगुप्त के शिष्य गंगदत्त ने 'द्विक्रिय' मत स्थापित किया। 6. वीर निर्वाण सं. 544 में रोहगुप्त ने ‘त्रैराशिक' मत स्थापन किया। 7. वीर निर्वाण सं. 584 में गोष्ठामाहिल ने 'अबद्धिक' मत चलाया। (आवश्यक नियुक्ति गाथा 778 से 788, विशेषावश्यक भाष्य गाथा 2300 से 2550) इनमें से कितनेक निह्नवों ने अपने जीवितकाल में ही योग्य व्यक्तियों द्वारा समझाने से अपने मत को छोड़ दिया था। विस्तार भय से यहाँ पुरा विवरण नहीं लिखा है। अन्य किसी तीर्थंकर के शासन में निह्नव नहीं हुये। भगवान महावीर के निर्वाण के 609 वर्ष व्यतीत हुए तब रथवीरपुर नगर में बोटिक मत उत्पन्न हआ। आ. हरिभद्रसूरीश्वरजी फरमाते हैं कि-बोटिक मत सर्व विसंवादी होने के कारण अन्य निह्नवों के साथ इनका नाम नहीं लिखा है। शास्त्रों में बताये निह्नवों की तरह ही आगमोक मूर्तिपूजा का निषेध एवं 45 में से 13 आगम छोड़कर 32 आगमों को ही मानना तथा मूलभूत के सिवाय नियुक्तिभाष्य, चूर्णि, टीका आदि अर्थागम को नहीं मानने के स्वरूप निह्नवन (छुपाने) की क्रिया करने वाला स्थानकवासी पंथ श्रीमान लोकाशाह से निलका तथा दया-दान आदि रूप धर्म को अंग को छुपाने वाला तेरापंथ भी इसी निह्ननव कोटि में आता है, जिनका शास्त्रों में उल्लेख 11
SR No.036510
Book TitlePrabhu Veer Ki Shraman Parmpara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy