________________ "जैनम् टुडे" के लेख की समीक्षा एक बार पुनः स्पष्टीकरण करना उचित प्रतीत होता है कि जिनेश्वरसूरिजी को खरतर बिरुद प्राप्ति की बात एवं खरतरगच्छ की उत्पत्ति के विषय में इतना ऐतिहासिक अन्वेषण एवं स्पष्टीकरण इसलिए किया गया है क्योंकि 'अभयदेवसूरिजी खरतरगच्छ के ही थे' एवं 'महोपाध्याय धर्मसागरजी गलत थे' वगैरह आक्षेप दिये जा रहे हैं एवं खरतरगच्छ सर्वप्राचीन गच्छ है, इस प्रकार का प्रचार वर्तमान में किया जा रहा है। इतिहास का गलत प्रचार, इतिहास की गलत परंपरा को जन्म न दे देवें, इसलिए ऐतिहासिक स्पष्टीकरण करना जरुरी बन जाता है। जैनम् टुडे का लेख इतना ही नहीं ‘जैनम् टुडे' के लेख में तो ऐसा तर्क भी दिया गया है कि "प्राचीन समय में शीलांकाचार्यजी, श्रीमलयगिरिजी, 1444 ग्रन्थकर्ता श्री हरिभद्रसूरिजी, 500 ग्रंथकर्ता श्री उमास्वाति वाचकजी, श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजी, श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणजी, श्री श्यामाचार्यजी, पूर्वधर चूर्णिकार श्री जिनदासगणि, महतराचार्यजी श्री शांतिसूरिजी, श्री यशोदेवसूरि आदि अनेक महापुरुषों ने किसी ने तो अपने बताए ग्रन्थ में अपने गच्छ का नाम नहीं लिखा। किसी ने अपने गुरु तक का नाम नहीं लिखा फिर अन्य ग्रंथों के आधार से उन पुरुषों को उनके गच्छ के जानने में आते हैं। ___ 'श्राद्धदिनकृत्य टीका', 'धर्मरत्न प्रकरण टीका', 'सुदंसणा चरिय' इन तीन ग्रंथों के प्रमाण से आ. जगच्चंद्रसूरिजी का तपागच्छ एवं मणिरत्न सूरिजी का शिष्य होना प्रमाणित नहीं होता। क्या आचार्य जगच्चन्द्रसूरिजी को तपागच्छ के एवं मणिरत्नसूरिजी के शिष्य मानना या नहीं? इसी प्रकार श्री अभयदेवसूरिजी ने भी अपने बनाये अनेकों ग्रंथों में खरतर नाम नहीं लिखा.....। (जैनम् टुडे, अगस्त 2016, पृ. 24) *1. देखें 'खरतरगच्छ का उद्भव' और 'जैनम् टुडे' अंक-अगस्त, 2016 के पृ. 13 पर जिनपीयूषसागरसूरिजी का लेख एवं खरतरगच्छ सम्मेलन संबंधित 'श्वेतांबर जैन' का जून 2016 के विशेषांक में दिया हुआ मुनिश्री मनितसागरजी का ‘खरतरगच्छ का गौरवशाली इतिहास' लेख। इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /045