________________ 'खरतर' शब्द की प्रवृत्ति कब और किससे? इस प्रकार जब सिद्ध होता है कि जिनेश्वरसूरिजी से खरतरगच्छ की उत्पत्ति नहीं हुई, तब प्रश्न उठता है कि खरतरगच्छ के आद्य पुरुष कौन थे? इस पर अगर विचार किया जाय तो पता चलेगा कि खरतरगच्छ में जिनदत्तसूरिजी को प्रथम दादा गुरुदेव के रूप में जितना महत्त्व एवं बहुमान दिया गया है, उतना जिनेश्वरसूरिजी के विषय में नहीं दिखता है। तथा वर्तमान में भी खरतरगच्छ वाले प्रतिक्रमण में जिनत्तसूरिजी का काउस्सग्ग करते हैं, जिनेश्वर-सूरिजी का नहीं। दूसरी बात जिनवल्लभगणिजी के गुरुभाई एवं जिनदत्तसूरिजी के समकालीन ऐसे जिनेशेखरसूरिजी की शिष्य परंपरा भी खुद को 'रुद्रपल्लीय' कहती है, ‘खरतर' नहीं। अतः अनुमान किया जा सकता है कि 'खरतर' शब्द की प्रवृत्ति जिनदत्तसूरिजी से हुई होगी, इसीलिए ‘खरतर' गच्छ की परंपरा उन्हीं को वफादार भी है। अंचलगच्छ के शतपदी ग्रंथ तथा तपागच्छ की पट्टावली आदि अन्य गच्छ के ग्रंथों में सं. 1204 से ही खरतरगच्छ की उत्पत्ति बतायी जाती है, जो उपर किये गये अनुमान को पुष्ट करती है। तथा कई इतिहासज्ञ भी इसी बात को प्रमाणित करते हैं। इतना ही नहीं, वर्तमान में, शत्रुजय की पावन भूमि पर हुए खरतरगच्छ महासम्मेलन एवं पदारोहण समारोह की आमंत्रण पत्रिका में लिखा है कि- 'दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी के काल में खरतरगच्छ के रूप में गौरवान्वित हआ।' तथा 'समस्या-समाधान और संतुष्टि' पुस्तक के पृ. 192 में मुनि मनितप्रभसागरजी ने प्रश्न 25 में 'जिनदत्तसूरि के समय विधिमार्ग किस नाम से प्रसिद्ध हुआ?' के जवाब में 'खरतरगच्छ' यह जवाब दिया है। इन दोनों उल्लेखों से इस बात की पुष्टि भी होती है। *1. विशेषार्थी देखें 1) निबन्ध निचय पृ. 27, पं. कल्याणविजयजी म.सा. 2) डॉ बुलर की रिपोर्ट पृ. 149 3) तथा जैनधर्मनो प्राचीन इतिहास भाग-2 पृ.19 -पं.हीरालाल इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /043