________________ सं. 1080 में दुर्लभ राजसभा की कसौटी खरतरगच्छ के परवर्ती साहित्य में जिनेश्वरसूरिजी को सं. 1080, सं. 1024 आदि में दुर्लभ राजा की सभा में ‘खरतर' बिरुद मिलने के उल्लेख मिलते हैं। परंतु कसौटी करने पर वे गलत सिद्ध होते हैं, क्योंकि ___पं. गौरीशंकरजी ओझा के 'सिरोही राज के इतिहास', पं. विश्वेश्वरनाथ रेउ के 'भारतवर्ष का प्राचीन राजवंश', 'गुर्जरवंश भूपावली' तथा आचार्य मेरुतुंगसूरिकृत 'प्रबंध चिन्तामणि' आदि अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि 'दुर्लभ राजा सं. 1066 से सं. 1078 तक ही विद्यमान थे तथा उनके बाद सं. 1078 से सं. 1120 तक भीमराज का राज्य था। और इसीलिये खरतर यति रामलालजी ने खरतर बिरुद की प्राप्ति के विषय में “महाजनवंश मुक्तावली' पृ. 167 पर सं. 1080 में दुर्लभ (भीम) और खरतर-वीरपुत्र आनन्दसागरजी ने श्री कल्पसूत्र के हिन्दी अनुवाद में भी वि. सं. 1080 में राजा दुर्लभ (भीम) ऐसा लिखना चालु किया। (भीम) इस तरह कोष्ठक में लिखने से ही स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें अपनी पट्टावलीओं में बतायी सं. 1080 में दुर्लभ राजा की बात में संदेह हो गया था। इतिहास में बढ़ा एक और विसंवाद इन सब ऐतिहासिक विसंवादों के निराकरण हेतु वर्तमान में सं. 1075 में 'खरतर' बिरुद प्राप्ति का नया प्रचार किया जाने लगा है, ताकि दुर्लभराजा की मौजुदगी में इस बिरुद प्राप्ति की सिद्धि हो सके। सं. 1075 में खरतर बिरुद प्राप्ति की कल्पना का अब तक के किसी भी साहित्य में उल्लेख नहीं मिलता है। इस तरह किसी आधार एवं ऐतिहासिक स्पष्टीकरण को दिये बिना अपनी मान्यता की सिद्धि के लिए इतिहास में फेरफार करना इतिहास का द्रोह कहलाता है और इससे खरतरगच्छ की उत्पत्ति में प्रचलित विसंवादों में एक और बढ़ौती ही हुई है। इस कारण से 'खरतरगच्छ के उद्भव' के विषय में खरतरगच्छ के अनुयायियों में भी मतभेद पड़ गया है। *1 देखें-परिशिष्ट 1, पृ. 81 *2 देखें-खरतरमतोत्पत्ति भाग -2, पृ. 3 *3 देखें-खरतरगच्छ का गौरवशाली इतिहास-मुनि मनितप्रभसागरजी, श्वेताम्बर जैन, जून 2016 *4 पू. जिनपियूषसागरजी म. ने भी “खरतरगच्छ का उद्भव' पुस्तक निकालकर सं. 1075 के मत का खण्डन किया है। इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /036