________________ पुरातत्त्वाचार्य जिनविजयजी के उल्लेख... जिनेश्वरसूरिजी के जीवन चरित्र विषयक अर्वाचीन साहित्य के अवलोकन के पूर्व में यहाँ पर जिनविजयजी के तत्संबंधी लेख देने उचित लगते हैं। वे इस प्रकार (1) जिनेश्वर सूरि के जीवन चरित्र का साहित्य जिनेश्वर सूरि के इस प्रकार के युगावतारी जीवन कार्य का निर्देश करनेवाले उल्लेख यों तो सेंकडों ही ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। क्योंकि उनकी शिष्य सन्तति में आज तक सेंकडों ही विद्वान् और ग्रन्थकार यतिजन हो गये हैं और उन सबने प्रायः अपनी अपनी कृतियों में इनके विषय में थोड़ा-बहत स्मरणात्मक उल्लेख अवश्य किया है। इन ग्रंथों के सिवाय, बीसियों ऐसी गुरुपट्टावलियाँ हैं, जिनमें इनके चैत्यवास निवारण रूप कार्य का अवश्य उल्लेख किया हआ रहता है। ये पट्टावलियाँ भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न यतियों द्वारा, प्राकृत, संस्कृत और प्राचीन देश्य भाषा में लिपिबद्ध की हई है। इन ग्रंथस्थ लेखों के अतिरिक्त जिनमूर्तियों और जिनमन्दिरों के ऐसे अनेक शिलालेख भी मिलते हैं। जिनमें भी इनके विषयका कितनाक सूचनात्मक एवं परिचयात्मक निर्देश किया हआ उपलब्ध होता है। परन्तु ये सब निर्देश, अपेक्षाकृत उत्तरकालीन हो कर, मूलभूत जो सबसे प्राचीन निर्देश हैं उन्हीं के अनुलेखन रूप होने से तथा कहीं-कहीं विविध प्रकार की अनैतिहासिकताका स्वरूप धारण कर लेने से, इनके विषय में यहाँ खास विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम यहाँ पर उन्हीं निर्देशों का सूचन करते हैं जो सबसे प्राचीन हो कर ऐतिहासिक मूल्य अधिक रखते हैं। (कथाकोष-प्रकरण-प्रस्तावना, पृ.7-8) (2) जिनेश्वरसूरि के चरित्र की साहित्यिक सामग्री। जिनेश्वरसूरि के जीवन का परिचय करानेवाली ऐतिहासिक एवं साहित्यिक मुख्य साधन-सामग्री निम्न प्रकार है1. जिनदत्तसूरिकृत 'गणधरसार्द्धशतक' ग्रंथ की सुमतिगणि विरचित बृहवृत्ति। 2. जिनपालोपाध्याय संगृहीत ‘स्वगुरुवार्ता नामक बृहत् पट्टावलि' का आद्य प्रकरण। / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /031