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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / डाले। उसके अन्दर मन्त्रीका पुत्र सुबुद्धि बैठा हुआ था। उसके दाहिने हाथमें शस्त्र और बायें हाथमें वेणीदण्ड था ; पर उसके दोनों पैर बँधे हुए थे। उसकी यह हालत देख, राजाने आश्चर्यमें पड़कर पूछा,-. "यह क्या मामला है ?" मन्त्रीने कहा,-"महाराज! मैं क्या जान ? शायद आप कुछ जानते हों।" सच्ची बात जाने बिना ही आप अपने इस जन्म भरके सेवकको जड़से उखाड़ फेंकनेके लिये तैयार हो गये थे। यह सन्दूक. मैंने आपके ही घर रख छोड़ा था। अब यदि उसके अन्दर यह करामात हो गयी, तो मेरा क्या अपराध है ?" यह सुन राजाने लजित होकर कहा, "हे मन्त्री ! तुम मुझे इसका भेद बतलाओ।" मन्त्रीने कहा,-"स्वामिन् ! हो सकता हैं, कि किसी भूत प्रेतने क्रोधित होकर मेरे इस निर्दोष पुत्र पर यह दोष लगानेके लिये यह काम किया हो। नहीं तो इस तरह सन्दूकमें बन्द करके रखे हुए आदमीकी ऐसी अवस्था क्योंकर हो सकती है ?" यह सुन राजाने प्रसन्न होकर पुत्र सहित मन्त्रीका आदर-सत्कार किया। इसके बाद उन्होंने फिर पूछा,-"मन्त्री! तुमने यह बात क्योंकर जानी ?" तव मन्त्रीने कहा,- "राजन् ! मैंने उसी ज्योतिषोसे पूछा था, कि मेरे ऊपर कैसे विपद् आयेगी ? उसने कहा, कि तुम्हारे पुत्रके करते तुम पर आफ़त आयेगी। इसीलिये मैंने उसके बतलाये अनुसार यह तरकीब की। श्री जिनधर्मके प्रभावसे सारे विघ्न टल गये।" इसके बाद राजा और मन्त्री दोनोंने अपने-अपने पुत्रोंको अपनी जगह पर बहाल कर दीक्षा ले ली और तपस्या करते हुए सद्गति पायी, . ज्ञानगर्भ मन्त्रीकी कथा समाप्त / ... "हे मित्र ! जैसे मन्त्रीने अपने पराक्रम और यत्नसे अपनी विपत्ति का नाश किया है, वैसाही तुम भी करो और इस खेदको त्याग दो।" - उसकी यह बात सुन, मित्रानन्दने कहा, "मित्र ! अब तुम्हीं कहो, कि मैं क्या करूँ ?" अमरदत्तने कहा,-"चलो, हमलोग यह देश छोड़ कर कहीं और चले जायें।” यह सुन, मित्रानन्दने अपने मित्रके हृदय की P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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