________________ . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / लोगोंमें यही बात प्रसिद्ध हुई, कि देवधरकी स्त्रीके जुडैले बालक पैदा क्रमशः उज्जयिनी-नगरीके सागर सेठकी स्त्री मित्रश्रीके गर्भसे उत्पन्न मित्रानन्दके साथ अमरदत्तकी मित्रता हुई। उन दोनोंमें ऐसीही मित्रता थी, जैसी दोनों आँखोंमें होती है। एक दिन वर्षा-ऋतुमें दोनो' मित्र क्षिप्रानदीके किनारे वटवृक्षके पास गिल्लोडंडा खेल रहे थे। एक बार अमरदत्तकी उछाली हुई गिल्ली दैवयोगसे वटवृक्षसे लटकते हुए किसी चोरके मृतक शरीरके मुखमें जा पड़ी। यह देख, मित्रानन्दने हँस कर कहा, -- " अहा, मित्र ! यह देखो, कैसे आश्चर्यकी बात है, कि तुम्हारी गिल्ली इस मृतकके मुंहमें चली गयी।" यह बात सुन, क्रोधितसा होकर * वह मृतक बोल उठा,-- "हे मित्रानन्द, सुन ले ! तू भी इसी तरह इसी वटवृक्षसे लटकाया जायेगा और तेरे मुँहमें भी गिल्ली पड़ेगी।" उसके ऐसे वचन सुन, मृत्युके भयसे भीत होकर मित्रानन्दका उत्साह खेलमें न रह गया, इसलिये उसने कहा,--"यह गिल्ली मुर्देके मुंहमें पड़ कर / अपवित्र हो गयी, इसलिये जाने दो-अब यह खेलही बन्द कर दिया .. जाये।" यह सुन, अमरदत्तने कहा, "मेरे पास दूसरी गिली है, उसीसे खेलो।" परन्तु इसपर भी मित्रानन्द खेलनेको. राज़ी न हुआ और दोनों मित्र अपने-अपने घर चले गये। ____ दूसरे दिन मित्रानन्दको उदास और उसका चेहरा काला पड़ा हुआ देख, अमरदत्तने उससे पूछा,- -“हे मित्रानन्द ! तुम क्यों ऐसे दुःखित होरहे हो ? तुम्हारे दुःखका कोई कारण भी हैं ? यदि हो, तो मुझसे कह सुनाओ।" उसके इस प्रकार बड़ा आग्रह करके पूछनेपर मित्रानन्दने उस मृतककी कही हुई बातोंका ब्यौरा अपने मित्रको सुनाया। यह सुन, अमरदत्तने कहा,-" हे मित्र ! मुर्दा तो कभी बातें नहीं करता, इसलिये मुझे तो ऐसा मालूम होता है, कि अवश्यही यह बात किसी वैतालने कही होगी। पर हाँ, कुछ ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता।" इसके बाद अमरदत्तने फिर उससे. पूछा,-"अच्छा, मित्र ! यह तबत P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust