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________________ तृतीय प्रस्ताव / Avvarivar nnnnnnnnnnnnnn. ohnnn साथ तापसी दीक्षा ग्रहण कर ली और वनमें जाकर रहने लगे। व्रत ग्रहण करते समय रानीके गर्भ था, यह बात किसीको मालूम नहीं थी। क्रमशः गर्भ वृद्धि पाने लगा। यह देख, राजाने एक दिन रानीसे पूछा," यह क्या ? " यह सुन, रानीने राजा और कुलपतिको सारा हाल सच-सच बतला दिया। तपस्विनियोंकी सेवा-सहायतासे पूर्ण समय पर रानीके एक शुभलक्षणयुक्त पुत्र उत्पन्न हुआ। - दैवयोगसे प्रसूति-अवस्थामें अपथ्य आहार करनेके कारण रानीके शरीरमें भयङ्कर व्याधि उत्पन्न हो गयी। तपोवनमें औषध और पथ्यका, जैसा चाहिये वैसा सुभीता नहीं था, इसलिये सब तपस्वियोंने मिलकर विचार किया,- 'माताके बिना गृहस्थोंके बालकोंका पालन-पोषण बड़ा हो कठिन है। ऐसी अवस्था में यदि कहीं इस बालकको माता मर गयी, तो फिर हम तापसगण इसका कैसे पालन करेंगे ? वे लोग इसी तरह चिन्ता करही रहे थे, कि इसी समय उजयिनीका रईस, देवधर नामक वणिक, व्यापारके लिमे घूमता-फिरता हुआ वहाँ आ पहुंचा। वह तपस्वियोंमें बड़ी भक्ति रखता था, इसीलिये उनकी वन्दना करनेके निमित्त तपोवनमें चला आया। उस समय उन सभी तपस्वियोंको चिन्तामें पड़े देखकर उसने उनसे इसका कारण पूछा। यह सुन, कुलपतिने कहा,-" हे देवधर! यदि तुम्हें हमारे दुःखसे दुःख होता हो, तो इस बालकको तुम लेलो।" यह सुन, उसने कुलपतिकी आज्ञा स्वीकार कर ली। तपस्वियोंने बालकको उसके हवाले कर दिया। उसने वह बालक लेकर अपनी देवसेना नामक स्त्री, जो उसके साथ वहाँ आयी हुई थी उसे दे दिया। उस बेचारीके एक नन्हींसी दूधपीती बालिका थी, इसलिये बड़ी अनुकूलता हुई। इधर मदनसेना रानीने अपने पुत्रको सभी जगह ढूँढा ; पर जब न मिला, तब मन मारकर रह गयी। क्रमशःउसका रोग बहुत बढ़ गया और उसीसे उसकी मृत्यु भी हो गयी। देवधरने उस लड़केको घर ले जाकर बड़ी धूमधाम की और उसका नाम अमरदत्त रखा तथा उसकी पुत्रोका नाम सुरसुन्दरी रखा, P.P.Ac. Gunratnasuri M.s. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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