________________ तृतीय प्रस्ताव। लाओ, कि तुम्हें उसकी बात सच्ची मालूम होती है या झूठी ? अथवा तुम उसे दिल्लगी-मात्र समझते हो?" यह सुन, मित्रानन्दने कहा,-"मुझे तो वह बात सच्ची ही मालूम पड़ती है।" इसपर अमरदत्तने कहा,___ "यदि सच्ची हो, तो भी क्या हुआ ? मनुष्यको चाहिथे, कि अपने भाग्य का लिखा हुआ मेट डालनेके लिये भी पुरुषार्थ करे / " मित्रानन्दने कहा,-"जो बात देवाधीन है, उसमें पुरुषार्थ क्या करेगा ?" अमरदत्तने __ कहा,-"मित्र ! क्या तुमने नहीं सुना है, कि ज्ञानगर्भ मन्त्रीने पुरुषार्थके ही द्वारा दैवज्ञकी बतलायी हुई अपनी जीवन-नाशिनी आपत्तिसे छुटकारा पा लिया था।" मित्रानन्दने पूछा,-"वह ज्ञानगर्भ कौन था ? और / उसने किस प्रकार आपत्तिसे छुटकारा पाया था ? यह सब हाल मुझे बतलाओ।" यह सुन, अमरदत्त ने उसे यह कथा कह सुनायी, ज्ञानगर्भ मन्त्री की कथा इसी भरतक्षेत्रमें धन-धान्यसे परिपूर्ण चम्पानामकी नगरी है। उसमें जितशत्रु नामके राजा राज्य करते थे। उनके मन्त्रीका नाम ज्ञानगर्भ था, जिसपर वे सदा प्रसन्न रहते थे और जो राज्यकी सारी चिन्ता अपने सिरपर लिये हुए था। मन्त्रीको स्त्रीका नाम गुणावली था। उसीकी कोखसे उसके सुबुद्धि नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ था, जो बड़ा ही सुन्दर था। एक दिन राजा जितशत्रु सब मन्त्रियों और सामन्तोंके साथ सभामें बैठे हुए थे, उसी समय कोई अष्टाङ्ग ज्योतिषका जाननेवाला दैवज्ञ द्वारपाल द्वारा राजाकी आज्ञा मैंगवाकर संभामें आया और राजाको आशीर्वाद देकर श्रेष्ठ आसनपर बैठ रहा। उस समय राजाने उससे पूछा, "हे दैवज्ञ! तुमने कितना ज्ञान उपार्जन किया है?" उसने कहा,-"हेराजन्! मैं ज्योतिष-विद्याके प्रभावसे, लाभ-हानि, जीवनमरण, गमन-आगमन और सुख-दुःखकी सभी बातें जान लेता हूँ।” तब P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust