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________________ तृतीय प्रस्ताव।। 73 मान और कषाय आदि भी इसी प्रकारं चार-चार तरहके हैं। वे क्रमशः पत्थर, हड्डी, लकड़ी और तृणके स्तम्भके समान हैं। माया भी चार तरहकी है। यह बाँस, मेढ़ेके सींग, बैलके मूत्र और अवलेहिकाके * समान है। इसी तरह लोभ भी चार तरहका होता हैं। यह किर. मिची रंग, या कीचड़, अञ्जन और हल्दीके रंगका सा होता है। अनन्तानुबन्धी आदि चारों कषायोंके भेद अनुक्रमसे जन्मपर्यन्त, एक वर्ष तक, चार महीनेतक और एक पखवाड़ेतक रहनेवाले होते हैं और क्रमशः नरक-गति, तिथंच-गति, मनुष्य गति और देवगतिके देनेवाले होते हैं। हे राजन् ! इन सोलह प्रकारके कषायोंको आदरपूर्वक पालते रहने से ये दीर्घकाल तक दुःख देते रहते हैं और स्वाभाविक रीतिसे करनेसे कुछ ही भव तक दु:ख देते हैं। इसलिये हे राजन् ! तुम तो इन कषायोंको एक दम त्याग दो ; क्योंकि थोड़ेसे दुष्कृतसे भी पापका बहुत बड़ा फल मिल जाता है। जिस प्रकार मित्रानन्द आदिको इनका फल भोगना पड़ा था, वैसेही औरोंको भी भोगना पड़ेगा। .. यह सुन, राजाने मुनिसे पूछा,—“ पूज्य मुनिराज! वे मित्रानन्द आदि कौन थे ? और उन्हें थोड़ेसे कषायका बहुत कड़वा फल किस प्रकार भोगना पड़ा? यह कृपाकर बतलाइये।" इसके उत्तरमें स्वयंप्रभ मुनिने कहा,-"हे राजन् ! उस मित्रानन्दकी कथा तुम खूब जी लगाकर सुनो।" ऐसा कहकर मुनिने अपनी अमृत भरी वाणीमें वह कथा सुनानी आरम्भ की :-- keexxHEXAMMotixxAIXXEEETA मित्रानन्द और अमरदत्तकी कथा EXI GO+e+60 इसी भरतक्षेत्र में अपनी अपार समृद्धिके कारण देवनगरीके समान बना हुआ और पृथ्वीपर परमप्रसिद्ध अमरतिलक नामका एक नगर है। ॐ बाँस श्रादिके ऊपरकी छाल। 10 Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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