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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / ___क्रमशः समय पूरा होनेपर अनुद्धरी रानीके गर्भसे एक श्यामकान्ति पुत्रका जन्म हुआ। पिताने खूब धूमधामसे उत्सव किये और उसका नाम अनन्तवीर्य रखा। ये दोनों राजकुमार क्रमशः बढ़ते-बढ़ते कला. भ्यास करने योग्य हो गये, इसलिये राजाने उन्हें कलाओं का अभ्यास कराया, धीरे-धीरे रूप और लावण्यले शोभित वे दोनों कुमार युवा. वस्थाको प्राप्त हुए / तब राजाने उनका विवाह भी कर दिया। - एक दिन उस नगरके उद्यान में विशेष ज्ञानवाले स्वयंप्रभ नामके मुनि पधारे। उसी समय स्तिमितसागर राजा भी घुड़सवारी करके थके हुए, विश्राम करनेकी इच्छासे, उसी नन्दनके समान मनोहर उपवनमें आकर थोड़ी देर बैठे रहे। इसी समय राजाकी दृष्टि अशोक वृक्षके नीचे ध्यानमग्न मुनिपर पड़ी और उन्होंने शुद्ध भावसे उनके पास जा, उनकी तीन बार प्रदक्षिणा कर, विधिपूर्वक उनको नमस्कार किया। इसके बाद विनयले नम्र बने हुए उचित स्थानमें बैठकर उन्होंने मुनिके मुँहसे इस प्रकारकी धर्मदेशना सुनी,—“कषाय कड़वे वृक्ष हैं, दुष्ट ध्यान इनके फूल हैं, इस लोकमें पाप-कर्म और परलोकमें दुर्गति ही इनके फल हैं। ऐसाही समझकर संसारसे विरक्त और मोक्षको इच्छा रखनेवाले. प्राणियोंको इन अनर्थकारी कषायोंका अवश्यमेव त्याग करना चाहिये / ". मुनिके ऐसे वचन सुन, राजाने कहा.-" हे मुनिराज ! आपने जो कहा, वह सब सत्य है ; परन्तु यह तो कहिथे, ये कषाय कितने प्रकारके हैं ?" .. गुरुते कहा, "हे नरेन्द्र! सुनो,-- ____ क्रोध, मान, माया और लोभ -ये चार प्रकारके कषाय हैं / इनमें से प्रत्येकके चार-चार भेद हैं। इनमें प्रथम अनन्तानुबन्धी, द्वितीय अप्रत्याख्यानी, तृतीय प्रत्याख्यानावरणी और चतुर्थ संज्वलन कहलाते. हैं। पहला, अनन्तानुबन्धी क्रोध, पत्थरपर की हुई लकीरकी तरह अंमिट और महादुःखदायी है। दूसरा, अप्रत्याख्यानी क्रोध, पृथ्वीकी रेखाकी तरह है। तीसरा, प्रत्याख्यानावरणी क्रोध, धूलकी रेखाके समान है और चौथा,संज्वलन क्रोध, जलकीरेखाकेतुल्य माना गया है। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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