________________ 64. श्रीशान्तिनाथ चरित्र / ................morammar.xxx राजाने धनदका खूब आदर-सत्कार किया और अपने महलोंमें आकर पुत्र-जन्मकी बधाइयाँ बजवायीं, खूब उत्सव करवाया और दीन दु:जियोंको बहुतसा दान दिया। , इसके बाद राजकुमार क्रमशः बढ़ते-बढ़ते युवावस्थाको प्राप्त हुए। एक दिन घे हाथी पर सवार हो, रोजवाटिकामें चले जारहे थे। रास्तेमें जाते-जाते नगरकी शोभा देखते हुए कुमारकी दृष्टि सूरराजकी पुत्री श्रीषेणा पर पड़ी और वे उसी समय कामदेवकी पीड़ासे व्याकुल हो गये। परन्तु उस कन्याके मनमें राजकुमारको देखकर कुछ भी प्रीति नहीं उत्पन्न हुई। काम-ज्वरसे पीड़ित कुमार घर आये, पर उनकी पीड़ा शान्त नहीं हुई। कुमारके मंत्रियोंने उनका अभिप्राय राजापर प्रकट किया / राजाने एक चतुर मन्त्रीको सूरराजके पास उनकी कन्या श्रीषेणाकी याचना करने के लिये भेजा। सूरराज मन्त्रीके मुंह से कन्याकी मँगनीकी बात सुन बड़े प्रसन्न हुए और मन्त्रीकी बड़ी खातिर करने लगे। इतनेमें उस लड़कीने आकर कहा,-"यदि तुम मुझे कुमारके हाथों सौंप दोगे तो मैं निश्चय ही आत्महत्या कर लूंगी।" सूरराजको अपनी कन्याकी यह बात सुनकर बड़ा दुःख हुआ / उन्होंने मन्त्रीसे कहा, "अभी तो आप जाइये, मैं पीछे अपनी कन्याको समझा-बुझाकर आपको ख़बर दूंगा।" मन्त्रीने राजाके पास आकर यह सब हाल कह सुनाया / मन्त्रीके जाने बाद सूरराजाने अपनी कन्याको बहुत तरहसे समझाया बुझाया, परन्तु वह किसी प्रकार राजकुमारको घरनेपर राजी नहीं हुई / लाचार, सूरराजने यही बात कहला भेजी। राजाने पुत्रको इसकी सूचना दे दी। यह सुन, राजकुमारको बड़ी निराशा और घोर दुःख हुआ। इसी समय धनदने राजाके पास आकर पूछा,- "स्वामी ! आज आप इतने चिन्तित क्यों हैं ?" राजाने उसको अपने पुत्रकी बात कह सुनायी। सब सुनकर धनदने कहा,-- "हे राजन् ! आप इस घातकी ज़रा भी चिन्ता न करें। मैं अवश्य ही राजकुमारकी मनस्का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.