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________________ द्वितीय प्रस्ताव मना पूरी करुंगा / " यह कह, घह घर आया और वहाँसे चक्र श्वरी देवीका दिया हुआ एक रत्न ले जाकर राजकुमारके हवाले किया / तदनन्तर राजकुमारने धनदके बतलाये अनुसार उस रत्नकी. विधिपूर्वक आराधना की, जिससे उस मणिका अधिनायक सन्तुष्ट हो गया ! उसके प्रभावसे सूरराजकी पुत्रीके मनमें राजकुमारके प्रति प्रीति उत्पन्न हो गयी और उसने अपनी एक सखीसे अपने मनकी बात कह डाली। उस सखीने यह बात उसके पितासे कही। उसके पिताने इसकी सूचना राजाको दी और राजाने अपने पुत्रसे सारा हाल कहा। इससे राजकुमारको बड़ा ही हर्ष हुआ। इसके बाद राजाने ज्योतिषीको बुलाकर विवाहका शुभ दिवस विचारनेको कहा / शुभ ग्रह-नक्षत्र में दोनों का विवाह हो गया। राजकुमार उसके साथ आनन्दपूर्वक विषयसुख भोगने लगे। .. एक दिन राजाके सिरमें बड़ी भयानक पीड़ा हुई / उसी समय धनदने देवीकी रोगापहारिणी मणिके प्रभावसे उनकी पीड़ा दूर कर दी। उस समय राजाके मनमें यह विचार उत्पन्न हुआ,-"ओह !. धनदके समान गुण-रत्नका सागर दूसरा कोई मनुष्य नहीं है। बड़े भाग्यसे यह मेरा मित्र हो गया है।" ऐसा विचार कर; वे उस दिनसे उसे पुत्रसे भी बढ़कर मानने लगे। ___एक दिन उस नगरके उद्यानमें शीलन्धर नामक सूरि अपने चरणरजसे पृथ्वीको पवित्र करते हुए परिवार सहित आ पहुँचे / सारे नगर-निवासी बड़ी भक्तिके साथ उनके दर्शन और वन्दन करनेके लिये . उद्यानमें आये। धनद भी रथमें बैठ कर वहाँ आया / गुरुकी वन्दना कर धनद इत्यादि सभी लोग यथायोग्य स्थानपर बैठ रहे। गुरुने उस समय इस प्रकार धर्मदेशना करनी आरम्भ की,-"इस संसार में जीवोंको धर्मके बिना सुखकी प्राप्ति नहीं होती। इसलिये, हे भव्य प्राणियों! तुम सदा धर्मकी आराधनाका प्रयत्न करते रहो। जो मनुष्यः धर्म करते समय बीच-बीचमें मनमें अन्तर ले आता है, वह महणाकके P AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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