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________________ . द्वितीय प्रस्ताव पिताके इस प्रकार पूछने पर धनदकी भी आँखें भर आयीं / . उसने संक्षेपमें अपना सारा वृत्तान्त माता-पिताको कह सुनाया और उनसे क्षमा मांगी। इसके बाद फिर उसने अपने पितासे कहा,-"पिताजी ! आप मुझे राजाके यहाँसे छुट्टी दिलवा दीजिये, जिसमें मैं आपकी पुत्रवधूके साथ आपके घर आकर रहने लगूं / " यह सुन, सेठ रत्नसारने बड़े हर्षके साथ राजसभामें जाकर पुत्रसहित राजाको भोजनका निमन्त्रण दिया। धनद अपनी प्रियाके साथ हाथी पर सवार हो, राजाके साथ-ही-साथ बड़ी धूमधामसे अपने घर आया। उस समय सेठने अपने देशान्तरसे लौटे हुए पुत्रके आने और राजाके अपने घर भोजन करनेके निमित्त पधारनेके कारण बड़ी खुशी मनायी और ख बधूमधाम की। राजाने भी बड़े आनन्दसे उसके घर भोजन किया। उस समय राजाका पुत्र, राजाकी गोदमें बैठा हुआ खेल रहा था। इसी समय एक मालीने आकर अपनी डालीसे एक उत्तम पुष्प लेकर राजाकी भेंट किया। राजाकी गोदमें बैठे हुए कुमारने उस पुष्पको लेकर सूंघ लिया। उसी क्षण पुष्पके अन्दर बैठे हुए एक सूक्ष्म शरीरवाले राजसर्पने उसकी नाकमें डंस दिया। राजकुमार बड़े जोरसे रो-रो कर कहने लगा,- “न जाने मुझे किस कीड़ेने काट खाया।" यह सुम, राजाने जो फूलको मसलकर देखा, तो उसके भीतर नन्हीसा राजसर्प धैठा दिखाई दिया। यह देख, अत्यन्त दुःखित हो, राजाने कहा,"अरे ! कोई जाकर संपहरीको बुला लाओ।" तत्काल सँपेहरी भी आ पहुँचा। उसने उसका डंक वगैरह देखकर कहा,- "यह राजा सर्प सब सोका शिरोमणि है / इसका विष बड़ा भयङ्कर होता है / यह जिसे काट खाता है, उसपर तन्त्र-मन्त्र कुछ भी असर नहीं करता।" यह सुन, राजा और भी चिन्तामें पड़े। इधर खूब विष व्याप जानेसे राजकुमारकी चेतना लुप्त हो गयी। इसी समय धनदने आकर चक्रभ्वरी देवीकी दी हुई मणिका जल छिड़क कर राजकुमारको तत्काल विष-रहित कर दिया। इससे राजा बड़े ही हर्षित हुए, इसके बाद P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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