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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / "मैं धन्य हूँ और धन्य है मेरा यह घर, कि तुम राजासे सम्मानित पुरुष होकर भी इस घरमें पधारे। मेरे योग्य जो कोई काम-काज हो, वह बतलाओ। मेरे घरमें जो कुछ है, सब तुम्हारा ही है / " यह सुन, धनदने कहा,--"पिताजी ! आपने जो कुछ कहा, वह सव सच है; परन्तु मैं जो पूछता हूँ उसका जवाब दीजिये। सेठजी! आप यह . तो कहिए, कि आपका जो धनद नामका पुत्र था, वह कहाँ गया और आपको उसका कुछ समाचार मालूम है या नहीं ? वह किसी निश्चित स्थानपर हैं या नहीं ?" यह सुन, सेठने उसे अपनेही पुत्रकी सूरत-शकलका देख, मन-ही-मन विचार कर इस प्रकार अपने पुत्रका वृत्तान्त निवेदन किया,- “एक दिन मेरे पुत्रने हज़ार मुहरें देकर एक गाथा मोल ली थी, इस पर मैने क्रोधमें आकर उसे कुछ खरीखोटी सुनायी, जिससे उसके मनमें बड़ा दुःख हुआ और वह अभिमानके मारे मेरा घर-बार छोड़, कहींको चल दिया। जबसे वह गया है, तबसे मुझे उसका कोई होलचाल नहीं मालम। अब मैं आकृति और बोल-चालको मिलाता हूँ, तो ऐसा मालूम पड़ता है, कि वही तुम्हीं तो नहीं हो; परन्तु तुमने अपने आपको ऐसा छिपा रखा है, कि मनमें संशय पैदा हो जाता है ; क्योंकि दुनियों में एकसी सूरत शकलके बहुतसे आदमी होते हैं। इसीलिये मुझे यह ख़याल होता है, कि तुम मेरे पुत्रकेसे आकार-प्रकारवाले कोई दूसरे मनुष्य हो।" ... .सेठकी यह बात सुन, धनदने कहा,- "पिताजी ! मैं ही आपका वहे. पुत्र हूँ।" यह सुन, सेठने उसके दाहिने पैरका निशान देख, उसे ठीक-ठीक पहचान लिया। धनदने भी विनयके साथ पिताके चरणों में सिर झुकाया। सेठने अत्यन्त प्रेमके वशमें हो, उसे गाढ़ालिङ्गन इसी नगरमें थे और अपनेको यों छिपाये हुए थे ? क्या तुम्हें किसी दिन मां-बापसे मिलनेकी इच्छा नहीं होती थी? पुत्र! तुम इतने दिनों तक :कहाँ रहे ! परदेशमें रहकर तुमने क्या क्या सुख-दुःख उठाये ? P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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