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________________ द्वितीत प्रस्ताव। कितनी प्रार्थना की, तब मैंने अपने शीलकी रक्षा करनेके विचारसे इसे . यह उत्तर दिया, कि यदि राजाकी आज्ञा होगी, तो मैं तुम्हारी स्त्री हो जाऊँगी। इस तरह इसे धोखे में रखकर मैंने इतने दिनों तक अपनी शीलकी रक्षा की। अब मैं अपने पतिसे वियोग हो जानेके कारण अग्निमें प्रवेश करना चाहती हूँ।" यह सुन, राजाने कहा,-"भद्रे ! तुम मरनेका विचार छोड़ दो, मैं तुम्हें तुम्हारे स्वामीसे मिला दूंगा।" वह बोली,- "महाराज ! आपको मेरे साथ हँसी नहीं करनी चाहिये। मेरे स्वामीको तो इस सार्थवाहने समुद्रमें फेंक दिया। अब वे कहाँसे मिलेंगे ?" इसके बाद राजाने ताम्बूल देनेके लिये धनदको बुलवाकर सुन्दरीसे कहा,- “सुन्दरी ! लो, अपनी आंखों अपने स्वामीको देख लो।" यह सुन, तिलकसुन्दरीने धनदकी ओर देखा और उसका यहाँ आना एकदम असम्भव समझ कर मन-ही-मन बड़ा आश्चर्य माना इतनेमें धनदने कहा,- "हे स्वामी ! इसका स्वामी वही है, जो न जाने कहाँसे अकस्मात् इसके महल में आ पहुँचा और जिसे इसीने राक्षसका विनाश करनेके लिये खड्ग दिया था। फिर उसी खड्गसे उस राक्षस को मारकर उसने स्नेहपूर्वक इसके साथ विवाह किया था। " इस प्रकार जब धनदने आदिसे अन्त तककी कुल बातें कह डाली, तब घह बड़ी प्रसन्न हुई और राजाकी आज्ञासे मत्स्योदरकी पत्नी बनकर रहने लगी। पीछे राजाने सार्थवाहको कत्ल करनेका हुक्म दिया। परन्तु दयालुताके कारण धनदने उसको भी छुड़वा दिया। इसके बाद उस सार्थवाहने धनदके जो सब अलङ्कारादिक मनोहर वस्तुएँ ले ली थीं, यह राजाको दिखला दीं। राजाने वह सब चीज़ धनदको दिलवा दीं। . इसके कुछ दिन बाद राजाकी आशा लेकर धनद अपने साथ बहुतसे आदमी लिये हुए अपने पिताके घर आया। उस समय सेठ रत्नसारने उस राजासे सम्मानित पुरुषको घर आया देख, उसे आसन आदि देकर उसका बड़ा आदर सत्कार किया। इसके बाद सेठने कहा, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.' Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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