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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। .... एक बार राजाने एकान्तमें धनदसे पूछा,- "हे मत्स्योदर! तुम अपना सारा वृत्तान्त मुझसे सच-सच कह डालो।" उसने भी राजा से अपना सारा कच्चा चिट्ठा इस प्रकार कह सुनाया, --"मैं इसी नगर के रईस सेठ रत्नसारका पुत्र हूँ। मैंने एक हज़ार सोनेकी मुहरें देकर एक गाथा मोल ली थी, इसीलिये मेरे पिताने मुझे घरसे निकाल दिया और मैं देशान्तरमें चला गया।" इसी प्रकार उसने अपनी और और बातें भी राजाको घतलायौं। तदनन्तर कहा, कि-"स्वामी! अभी आप मेरा भण्डाफोड़ न करें, क्योंकि मेरी स्त्री और धनादिका हरण करनेवाला देवदत्त मामका सार्थवाह भी, सम्भव है, किसी दिन यहाँ आ पहुँचे, तो मेरा मनोरथ सिद्ध हो जायेगा।” यह कह उसने राजा- .. को प्रसन्न कर लिया और बड़े आनन्दसे उनके पास ही रहने लगा। 3. भाग्य योगसे एक दिन देवदत्त सार्थवाह भी वहाँ आ पहुँचा। यह भी भेंट लिये, तिलकसुन्दरीके साथ राजसभामें आया / राजाने भी उसे पहचान कर उसका भली भांति आदर-सत्कार किया / मत्स्योदर " भी उस सार्शवाह और अपनी स्त्रीको पहचान कर, उनका अभिप्राय जाननेकी इच्छासे एक ओर छिप रहा / उसी समय राजाने बड़े आदरसे सार्थवाहसे पूछा,- "हे भद्र ! तुम कहाँसे आ रहे हो ? और तुम्हारे साथ यह बालिका कौन है ? " उसने कहा,- "हे राजन् ! मैं . कटाहद्वीपसे चला आरहा हूँ। मैंने इस बालिकाको एक द्वीपमें अकेली पड़ी पाया है। मैंने इसे श्रेष्ठ वस्त्र, अलङ्कार, आहार और ताम्बूल आदिसे परम सन्तुष्ट कर रखा है। अब यदि आपकी आशा हो जाये, तो मैं इसे अपनी पत्नी बना लूं।" यह सुन, राजाने उस बालिकासे पूछा,-"बालिके! तुम्हें यह वर पसन्द है या नहीं ? कहीं यह तुम्हारे ऊपर बलात्कार तो नहीं करना चाहता ? " यह सुन, . बह बोली,- "इस पापीका तो मैं नाम भी लेना नहीं चाहती; क्योंकि इसने मेरे गुणरूपी रत्नोंकी निधिके समान स्वामीको समुद्रमें डाल दिया है। इस दुरात्माने मुझसे मिलनेकी कितनी इच्छा की, मेरी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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