________________ द्वितीय प्रस्ताव। जंघा विदीर्ण कर अपने छिपाये हुये पांचों रत्नोंको निकाल कर राजा. को दिखला दिया / उन महा मूल्यवान रत्नोंको देखकर राजाको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने उसी समय अपने सिपाहियोंसे कहा,-"तुम लोग इस गीतरतिका भी शरीर काट कर रत्नोंको निकाल कर मुझे दिखलाओ।" यह सुनते ही गीतरतिके देवता कूच कर गये और उसने / डरके मारे कहा,- "हे स्वामिन् ! न तो यह मेरा भाई है, न मैं इसे पहचानता हूँ, न मेरे शरीरमें रत्न भरे हुए हैं।" वह ऐसा कही रहा था, कि राजाके सेवक उसकी देहसे रत्न निकालनेके लिये तैयार हो गये। अबके वह फिर कहने लगा,-"महाराज ! मैंने जो कुछ कहा हैं, वह सरासर झूठ है / : सुदत्त सार्थवाहने मुझे सोनेकी. ईटें देकर मुझसे यह पाप-कर्म करवाया है / हे देव ! यदि आपको मेरी बातका विश्वास न हो, तो मेरे घरसे उन ईटोंको मँगवा कर दिलजमई कर लें।" यह सुन राना मत्स्योदरका मुँह देखने लगे। यह देख, उसने कहा, --"प्रभो ! इसकी यह बात ही ठीक है।” राजाने कहा, "मत्स्योदर ! अब तुम मुझे सब सञ्चा हाल कह सुनाओ।” मत्स्योदरने कहा, -- “हे नरेश्वर ! उस वणिक्के जहाज़में मेरी आठसौ जोड़ी सोनेकी ईंटें और पन्द्रह हज़ार निर्मल रत्न हैं। उन ईटोंके अन्दर मेरे . नामका चिह्न भी अङ्कित है।" यह कह उसने राजासे अपना नाम आदि बतलाते हुए अपना बहुत कुछ वृत्तान्त कह डाला। यह सुम, राजाने उस .. चण्डालके घरसे वेचारोंजोड़ी सोनेकी ईंटें मँगवायीं और उनकोतुड़वाकर धनदका नाम भी खुदा हुआ देख लिया। तत्काल राजाने उस पणिक और चण्डालका वध करनेका हुक्म दे डाला; पर कृपालु मत्स्योदरने उसी समय उन दोनोंकी प्राणभिक्षा मांग ली। इसके बाद राजाने सोनेके जलसे उसे फिर स्नान करवा कर पवित्र करवाया और उस वणिक् तथा चाण्डालके पास उसका जो कुछ-धनरत्न था,यह सब मँग. वाकर धनदको दे दिया / वणिक तथा चण्डालको उचित शिक्षा मिली और धनद वह सारी लक्ष्मी पाकर धमद् (कुबेर के समान हो गया)। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust