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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / सार्थवाहने कहा, "तू किसी दिन एकान्तमें राजासे जाकर कह कि यह मत्स्योदर तो मेरा भाई है। यह सुन, उसने भाटपट सार्थ-. बाहकी बात स्वीकार कर ली। इस पर प्रसन्न होकर ,सार्थवाहने उस बएसालको चार जोड़ी सोनेकी इंटे लाकर दे दी। उन्हें घर ले जाकर वह चण्डाल गायक सभामें बैठे हुए राजाके पास आकर गाना सुनाने लंगा। उसके सङ्गीतले प्रसन्न होकर राजाने पानखवासको हुक्म दिया, कि इस उत्तम गायकको शीघ्रही पाम खिलाओ। इस प्रकार राजाका दुषम पाकर ज्योंही धनद उसे पान देने गया, त्योंही वह गीतरति नामक . दुष्ट गायक धनदके गलेसे चिपट गया, और बोला,- "भाई ! आज कितने दिन बाद मैंने तुमको देखा!” यह कह, वह अतिशय विलाप करने लगा। यह देख, रामाने उससे पूछा, "मत्स्योदर ! यह गायक क्या कह रहा है ? इस पर मन-ही-मन उपाय चिन्तनाकर धनदने कहा,-"महाराज! यह जो कुछ कह रहा है, वह सब ठीक है।" राजाने पूछा,- "क्योंकर ठीक है, बताओ।”. इसके उत्तरमें धनदने राजाको एक मन गढन्त कथा कह सुनायी। उसने कहा,-"महाराज! पहले इस नगर में मेरे पिता, जो चण्डाल थे और गीत कलामें बड़े ही निपुण थे, वे स्वामीके परम कृपापात्र थे। उनके दो त्रियाँ थीं / उनके हमी दोनों पुत्र थे। मेरी माताको पिता कम प्यार करते थे, इसलिये मैं भी उनका पैसा प्याग नहीं था। इसकी माँ उनकी बड़ी प्यारी. दुलारी थी, इसलिये यह भी उनका बड़ा लाड़ला था। मेरे पिताने भविष्यत्का विचार कर मेरी जंघामें पांच रत्न छिपाकर रख दिये, और जाँधके जख्मको झट मरहम पट्टी देकर अच्छा कर दिया। इसके . बाद मेरे पिताने मुझसे कहा, "हे वत्स! यदि कदाचित् तुम्हारे धुरे दिन आयें, तो इन रत्नोंको निकालकर इन्हींसे अपना काम चलाना " यहीं कहकर उन्होंने मुझे खुश कर दिया। तदनन्तर यह उनका अत्यन्त प्यारा था, इसलिये पिताने इसके सारे शरीरमें रत्न भर दिये।" यह कह, धनदने राजाके मनमें विश्वास उत्पन्न करनेके इरादेसे अपनी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak'Trust ---
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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