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________________ winicanciant-sina द्वितीय प्रस्ताव। .. देख कर पूछा,-"भाई तुम कौन हो ?" धनदने कहा,-"मैं तो.वनचर हूँ।" वे सब बोले,-"तुम हमें कोई जलाशय बतलाओ," इसपर धनदने उन्हें कुआँ दिखला दिया। सार्थवाहके उन सेवकोंने कुएँ के पास सोनेकी ईंटों और रत्नोंका ढेर पड़ा देखकर धनदसे पूछा, “हे धनचर ! यह सब किसका है ?" उसने कहा, .. "मेरा है / इस धनको जो कोई स्थल-मार्गमें ले जायगा, उसको मैं इसका चौथाई हिस्सा दे डालूंगा।" इस तरहकी बातें हो ही रही थीं, कि उक्त व्यापारी भी वहीं आ पहुँचा और धनदको बड़ी विनयके साथ प्रणामकर, आलङ्गन करते हुए, उससे कुशल-प्रश्न करने लगा। इसके बाद उसने धनदसे इस बात की प्रतिज्ञा की, कि वह इस सारे धन-रत्नको उसके घर पहुँचा देगा। इसके बाद सार्थवाहने ( व्यापारीने ) अपने नौकरोंसे उन सुनहरी ईंटों और रत्नोंको अपने जहाज़ पर लदवाना शुरू किया। धनद भी गिन-गिनकर इंटों और रत्नोंको उनके हाथमें देने लगा। वह अगाए सम्पत्ति देख, सार्थवाहके मनमें पाप जगा और उसने अपने नौकरोंको एकान्तमें बुलाकर कहा,-"इस अदमी को उसी कुएँ में ढकेल दो।" इस प्रकार अपने स्वामोकी आज्ञा पाकर उन आदमियोंने धनदसे कहा, "हे परोपकारी महात्मा! हम लोग कुएं से पानी खींवनेकाः हाल नहीं जानते / तु हे पहले से ही इसका अभ्यास है। इसलिये कृप कर हमें थाड़ासा जल कु से निकाल दो।" यह सुनकर. धनद दयाके मारे कुएँ: से गनो खींचने लगा। इतनेमें मौका प कर उन दुष्टांने उस कुएं में ढकेल. दिया। देवयोगसे वह पत्तों ने भरे हुए उस कुएं की मेखला पर हा गिरा, पानी में नहीं गिरने पाया / सौभाग्यसे उसके ज़रा भी चोट नहीं आयी। अब तो धनद उसी गाथाको याद करता हुआ कुएं के इद गिर्द नज़र दौड़ाने लगा। अकस्मात एक स्थान पर गुफासी नज़र आयी। कौतुः हलके मारे वह उसीके अन्दर घुस पड़ा। अन्दर जाकर पैरसे मालूमः करता हुआ वह उसी मार्गसे बहुत नीचे उतरता चला गया। आगे जा:: कर उसे समतल मार्ग मिला / . उसी मार्गसे आश्चर्य के साथ जाते-जाते P Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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