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________________ . द्वितीय प्रस्ताव / देवीसे कहा, "मैं सदा तुम्हारे मन्दिरमें रहता हूँ और तुम्हारी सेवा करता हूँ , तो भी तू ऐसी दुष्ट है, कि मुझे कुछ भी नहीं देती ? तुम आज ही प्रत्यक्ष होकर मुझे कुछ धन दो, नहीं तो मैं विना अनर्थ किये न मानेगा / " देवीने कहा,– “रे दुरात्मा! क्या तूने या तेरे बापने मेरे पास कुछ धरोहर रख छोड़ी है, जो मैं तुझे धन हूँ?" ... यह सुन, उस जुआरीने एक बड़ा सा पत्थर उठाकर कहा,__ "तुम चाहे जहाँसे लाकर मुझे धन दो, नहीं तो मैं तुम्हारी मूर्ति तोड़-फोड़कर रख दूंगा।" ___यह सुन, देवीने विचार किया,-- "यह दुष्टात्मा स्पष्टवक्ता है; इस लिये यह निर्दय सचमुच कुछ-न-कुछ ऊटपटाङ्ग काररवाई किये बिना न रहेगा। फिर कोई इसका हाथ थोड़े हो रोकने जायगा; अतएव कुछ दे देना ही ठीक है।” ऐसा विचार कर देवीने उसके हाथमें एक काग़ज़का टुकड़ा दिया, जिसपर एक गाथा लिखी हुई थी। यह देख, उस पापीने कहा,-"अरी रॉड! मैं इस काग़ज़के टुकड़ेको लेकर क्या करूँगा ?" देवीने कहां, “तू इसे बाज़ारमें लेजाकर बेच दे। जो तुझ एक हज़ार रुपये दे, उसीको यह गाथा देना।” : यह सुन, वह जुआरी उस गाथावाले काग़ज़को बाज़ार में ले गया और यही कह-कह कर फेरी लगाने लगा,-"भाइयो ! कोई यह गाथा मोल ले लो। ले लो गाथा अनमोल माल है !" लोगोंने पूछा,-"अरे यह क्या चीज है ?" उसने गाथाका काग़ज़ दिखला दिया। :उसे व्यर्थकी वस्तु समझकर लोगोंने बड़े आश्चर्य के साथ उसका दाम पूछा। उसने उसका मूल्य एक सहस्र स्वर्णमुद्राएँ बतलाया। इतना बेहिसाब मूल्य सुनकर ही गाहक भड़क जाते थे। किसीने वह गाथा मोल नहीं ली। अन्तमें वह धनद नामक उस सेठके बेटेकी दूकान पर गया और उसे वह गाथा दिखला कर उसका दाम बतलाया। सेठके पुत्रने वह गाथा हाथमें लेकर पढ़ी। उसमें इस.प्रकार लिखा था,- .. . P.P.Ac. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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