________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। "ज चिय विहिणा लिहिय, तं चिय परिणमइ सयललोयस्स / ___ इय जाणेउण धीरा, विहुरे वि न कायरा हुंति // 1 // " अर्थात्-'विधाताने जो कुछ भाग्यमें लिख रखा है, वही सबको प्राप्त होता है। यही समझ कर धीर पुरुष विपद् पड़ने पर कायर नहीं होते।" इस गाथाको पढ़कर धनदने अपने मनमें विचार किया,-"यह गाथा तो लाख मुहरोंको भी सस्ती है। फिर जब एक हज़ार मुहरों पर ही बेच रहा है, तो बड़ा सस्ता माल है, लेही लेना चाहिये।" यह विचार कर, उसने उस जुआरीको मुंहमांगा मूल्य देकर वह गाथा ले ली और बार-बार उसे पढ़ने लगा। इतने में उसका पिता सेठ रत्नसार आ पहुँचा / उसने पूछा, “बेटा ! आज तुमने कौनसा व्यापार किया ?" यह सुन पासकी दूकानोंके व्यापारी हंसते हुए बोले,- "सेठजी ! आज तो आपके बेटेने बहुत बड़ा व्यापार कर डाला है। उसने हज़ार मुहरें देकर एक गाथा मोल ली है। सचमुच यदि तुम्हारे पुत्रकी व्यापारमें ऐसी ही कुशलता बनी रही, तो यह घरको पूँजीको बहुत बढ़ा देगा।" . ' लोगोंकी यह तानेज़नी सुनकर सेठ जल गया और क्रोधके साथ अपने पुत्रसे कहने लगा,-"रे दुष्ट ! तू अभी यहाँसे चला जा। मैं तेरा मुँह देखना भी नहीं चाहता। सूना घर अच्छा, पर चोरोंसे भरा . हुआ घर अच्छा नहीं, तू पुत्र ही है तो क्या ? मुझे तेरी यह कार रवाई बिलकुल ही नापसन्द है।" ____ इस प्रकारके अपमानयुक्त वचन सुनकर धनद उसी क्षण दूकानसे . नीचे उतर आया और मन-ही-मन उस गाथाका अर्थ स्मरण करता हुआ चल पड़ा। नगरके बाहर हो, वह सायंकालके समय उत्तर दिशामें एक वनमें आ पहुँचा। वहाँ निर्मल जलसे भरा हुआ एक बड़ा भारी सरोवर देख, उसीमें स्नान कर, वह पास ही एक वटवृक्षके नीचे पत्तोंकी सेज बिछाकर सो रहा। इसी समय देवसंयोगसे एक धनुष P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. n Gun Aaradhak Trust