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________________ द्वितीय प्रस्ताव। पराक्रमी पुत्रोंको हरा दिया / तब अपनी सेनाको तितर-बितर होते . देख, राजा श्रीविजय स्वयं संग्राम करनेको आगे आये। क्रोधसे भरे हुए राजा श्रोविजयने खड़के प्रहारसे अशनिघोषके दो टुकड़े कर डाले / मायावी अशनिघोषने झटपट अपने दो रूप कर डाले / श्रीविजयने फिर इन दोनोंको काट डाला। तब चार अशनिघोष हो गये / इसी प्रकार बार-बार काटे जाते हुए अशनिघोषने अपनी मायाके प्रभावसे अपने सो रूप बना डाले / ज्यों-ज्यों राजा श्रीविजय उसपर प्रहार करते जाते, त्यों-त्यों उसके रूपोंकी संख्या बढ़ती जाती थी। इससे राजा श्रीविजय उसका वध करते-करते उकता गये। इतने में राजा अमिततेज अपनी साधनाकी सिद्धि करके वहां आ पहुँचे। अब राजा अमिततेजने अपनी विद्याके प्रभावसे अशनिघोषकी मायाका नाश कर दिया, जिससे वह घबराकर भाग चला। उसे भागते देख, अमिततेजने अपनी विद्याको आज्ञा दी, कि उस पापी अशनिघोषको दूरसे ही पकड़ लाओ। इस प्रकार आज्ञा पाकर वह विद्यादेवी उसके पीछे पीछे चली। इधर सीमनग * नामक पर्वतपर श्रीऋषभदेवके मन्दिरके पासही बलदेवमुनिको केवलज्ञान प्राप्त हुआ था, इसलिये देवगण उनका वन्दन तथा ज्ञानका उत्सव करनेके लिये आये हुए थे। यह देख, अशनिघोष उन केवलीकी शरणमें आ गिरा। इसीलिये विद्यादेवी वहाँतक आकर पीछे फिरी और अमिततेजके पास आकर सारा हाल सुनाने लगी / उसके मुंहसे सब कुछ सुनकर अमिततेजने अपने मरीचि नामक दूतको बुलाकर कहा,''हे दूत ! तुम अभी अमरचचा नगरीमें जाकर वहाँले सुतारादेवीको लिये हुए मेरे पास सीमनग-पर्वत पर चले आओ / " यह कह, राजा अमिततेज, श्रीविजय तथा अन्यान्य सैन्य-सामन्तोंको साथ लिये हुए, बाजे-गाजेके साथ, सीमनग-पर्वतपर बलभद्रमुनिकी वन्दना. करने आये। सबसे पहले जिनेश्वरके मन्दिर में आकर जिनेन्द्रकी स्तुति करनेके बाद श्रीविजय और अमिततेज बलदेवके पास आये। इधर मरीचि ... क्षेत्रकी मर्यादा बाँधने वाला पर्वत / ... .. BP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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