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________________ 40 ~ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। अशनिघोषके पास भेजा। उस दूतने अमरचञ्चा नगरीमें राजा अशनिघोषसे जाकर कहा,-"हे राजन् ! आप मेरे स्वामीकी बहन और राजा श्रीविजयकी पत्नी सुताराको बिना समझे बूझे यहाँ ले आये हैं; इसलिये उन्हें चपचाप धीरेसे लौटा दीजिये, नहीं तो अनर्थ होजायेगा / " यह सुन अशनिघोषने कहा,- "अरे दूत ! क्या मैं इस स्त्रीको लौटानेकेही लिये ले आया हूँ ? जो कोई इसे मेरे यहाँसे हटा ले जाना चाहता है, वह मेरीतलवारके घाट उतरना चाहता है, ऐसाही समझो।” यह कह, अशनिघोषने दूतको गर्दनिया देकर निकलवा दिया। दूतने अपने नगरमें आकर अपने स्वामीको कुल कैफ़ियत कहसुनायी। . . इसके बाद राजा अमिततेजने राजा श्रीविजयको दो विद्याएँ सिखलायीं-पहली पर-शस्त्र-निवारिणी और दूसरी बन्ध-मोक्ष-कारिणी अर्थात् बन्धनसे छुड़ाने वाली / श्रीविजयने सात दिनों तक इन दोनों विद्याओंकी विधिपूर्वक साधना की / तदन्तर विद्यामें सिद्धि लाभकर, श्रोविजय शत्रुको जीतने चले। उनके साथ-साथ अमिततेजके रश्मि वेग आदि सैकड़ों पुत्र तथा और भी बहुतसे वीर जो अन्यान्य विद्याओंके बलसे बलवान तथा भुजबलसे शक्तिमान थे, चल पड़े। सब लोगोंके साथ राजा श्रीविजय अशनिघोषके नगरके पास आ पहुंचे। - इसके बाद राजा अमिततेज अपने सहस्र रश्मि नामक जेठे बेटेके साथ दूसरोंकी विद्याका नाश करनेवाली महाज्वाला नामक विद्याकी साधना करने के लिये हिमवान पर्वत पर चले गये। वहाँ एक महीने का उपवास लेकर वे विद्याकी साधना करने बैठे। / है इधर अशनिघोषने राजा श्रीविजयके सैन्य-सहित आनेका समाचार सुन, अपने पुत्रों को सैन्य लेकर लड़नेको भेजा। दोनों सैंन्योंमें भयङ्कर युद्ध छिड़ गया। दोनोंमें से कोई सेना पीछे हटती हुई नहीं मालूम पड़ती थी। इसी प्रकार एक महीने तक लड़ते रहनेके बाद अमिततेजके पुत्रोंने अशनिघोषके बलवान् पुत्रोंको पराजित कर दिया। यह देख, अशनि: घोष स्वयं मैदानमें उतर आया। इस बार शनिघोषने अमिततेजके
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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