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________________ द्वितीय प्रस्ताव। . रूपवती ! हे गुणवती ! हे सुतरा! हेप्राणवल्लभा ! तुम कहाँ हो?" इसी / तरह बहुत रो चुकने पर राजा मरनेको तैयार हो गये। उनके नौकरोंने उनका यह हाल देख, राजमहलमें आकर लोगोंसे यह समाचार कह . सुनाया। यह सुनकर उनकी माता स्वयंप्रभा और भाई विजयभद्रको बड़ा दुःख हुआ। इसी समय आकाश मार्गमें आकर किसी पुरुषने कहा, - "हे देवी स्वयंप्रभा! तुम विषाद न करो–मेरी बात सुनो रथनपुर __ नगरके स्वामी अभितेजके द्वारा सम्मानित संभिन्नश्रोत नामका एक उत्तम ज्योतिषी है। वहीं मेरा पिता हैं, मैं उसीका पुत्र हूँ, मेरा नाम दीपशिख है / हम दोनों पिता पुत्र ज्योतिर्वनमें क्रीड़ा करने गये हुए थे। वहां हमने उस नगरके आगे बहुत दूर अमरचञ्चापुरीके स्वामी अशनिघोष राजाके द्वारा हरी जाती हुई और शरण-विहीन तुम्हारी रानी सुताराको देखकर उस आकाशचारी राजासे कहा,-"रे पापी दुष्ट ! तू हमारे स्वामीकी बह नको कहाँ लिये जारहा है ?. यह सुन, सुताराने हमसे कहा,—“इस समय तुम्हारी कोई चेष्टा काम न करेगी; इसलिये तुम पोतनपुरके उद्यानमें जाकर वैतालिनी विद्याके द्वारा मोहमें पड़े हुए श्रीविजय राजाको होशमें लाओ; क्योंकि वे सुतारा बनी हुई एक वैतालिनीके पीछे जान देनेको तैयार हो रहे हैं। सुताराकी यह बात सुन, हमने उद्यानमें जा कर राजाको चेत कराया है, जिससे तुरतही दुष्ट वैतालिनी विद्याका नाश हो गया। इसके बाद देवीका हाल सुनकर राजा श्रीविजय उनकी प्राप्तिका उपाय कर रहे हैं। . उन्हींकी आज्ञासे मैं आप लोगोंको यह ख़बर देने आया हूँ। यह सन स्वयंप्रभा देवीने उसका बड़ा आदर सत्कार किया। इसके बाद वह फिर राजा श्रीविजयके पास चला आया और वहाँसे संभिन्नश्रोत तथा दीपशिखा राजाको रथनूपुर नगर में ले गये। वहाँ राजा अमिततेजने श्रीविजय राजाकी बड़ी आवभगत की और उनके आनेका कारण पूछा। यह सन उन्होंने अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया। यह सुन अमिततेजको बड़ा क्रोध उत्पन्न हुआ और उन्होंने मरीचि नामक एक दूतको समझा-बुझाकर उसी समय P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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