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________________ द्वितीय प्रस्ताव उसे कोई रोक नहीं सकेगा। हाँ, उस उपद्रवको रोकनेके लिये तप इत्यादिधर्म-कार्य करना चाहिये।" - यह सुन, चौथे मन्त्रीने कहा,-"इन मन्त्री महाशयने बहुत ही उत्तम उपाय बतलाया है, इसमें सन्देह नहीं ; पर मेरे चित्तमें जो बात आती है, वह मैं भी कह सुनाता हूँ।" यह कह उसने राजाकी आज्ञा लेकर फिर कहा,-"इस ज्योतिषीने कहा है, कि पोतनपुरके स्वामीके मस्तक पर विजली गिरेगी; यह नहीं कहा, कि राजा श्रीविजयके ऊपर गिरेगी; इस लिये मेरी राय तो यह है, कि इन सात दिनोंके लिये किसी और ही मनुष्यको यहाँका राजा बना दिया जाये और इतने दिन उसीकी हुकूमत जारी रहे।" उस मन्त्रीकी यह बात सुन, उसकी बुद्धिकी प्रशंसा करता हुआ वह ज्योतिषी बोला,-"इप्त मन्त्रीने बहुतही ठीक कहा / तुमलोग ऐसाही करो। मैं भी यही कहनेके लिये यहाँ आया था। बस इन सात दिनोंतक श्रीविजय राजा जिनमन्दिर में बैठे हुए तपमें लगे रहें, जिससे यह विपद् टल जाये।" ____ उसकी यह बात सुन, राजाने कहा,-"जिस किसीको राज्य दिया जायेगा, वह बेचारा तो जी सेही जायेगा ; फिर ऐसा अधर्म क्यों किया जाये ?" राजाकी यह बात सुन, सब मन्त्रियोंने एकत्र होकरः विचार करके कहा,-"यक्षकी प्रतिमाको राज्याभिषेक देकर उसीका हुक्म चलाया जाये। यदि देवताके प्रभावसे यक्षकी प्रतिमा नहीं नष्ट हुई, तब तो अच्छा ही है ; नहीं तो काष्ठकी प्रतिमा ही न जायेगी ! वह फिर नयी ' हो जा सकती है।" ... उनलोगोंकी यह राय सुन, श्रीविजय राजाने भी उनकी बात मान ली। इसके बाद राजा अपनी रानीके साथही श्रीजिनेश्वरके मन्दिरमें चले गये और पौषध-व्रत ग्रहणकर तप-नियममें तत्पर रहते हुए, आसनमारे मुनियोंकी तरह पञ्चपरमेष्टि नमस्कारके ध्यानमें मग्न हो गये, इधरमंत्रियोंने . और सामन्तोने मिलकर राजाके स्थानमें यक्षकी प्रतिमाको स्थापितकर, . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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