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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। उसीके समीप बैठने और उसीको राजा मानकर सेवा करने लगे। सातवें दिन एकाएक आसमानमें बादल घिर आये। बड़े ज़ोर-ज़ोरसे बादल गरजने और पानी बरसने लगा। इसी समय बार-बार चमककर भयङ्कर बिजली उस यक्ष प्रतिमाके ऊपर आ गिरी, बातकी बातमें वह प्रतिमा नष्टहो गयी ; पर राजाकी जान बच गयी। वेसकुशल रह गये ! यह देखकर लोगोंको बड़ा अचम्भा हुआ। उपसर्ग शान्त होने पर ज्योतिषीके कहे अनुसार राजा श्रीविजय अपने महलमें आये। उस समय अन्तःपुरकी समस्त स्त्रियाँ हर्षके मारे उस ज्योतिषीको रत्न, अलङ्कार और वस्त्रादिक देकर सम्मानित करने लगीं। राजाने भी उसे बहुतसा धन दे. आदरके साथ उसकी विदाई की। नयी रत्नमयी यक्ष-प्रतिमा बनवाकर राजाने बड़ी धूमधामसे जिन प्रतिमाकी पूजा करवायी और अपने राज्य भरमें पुनर्जन्म महोत्सव करवाया। _एक दिन राजा श्रीविजय, रानी सुताराके साथ, ज्योतिर्वन नामक उद्यानमें कोड़ा करनेके मिमित्त गये हुए थे। वहाँ पर्वतकी छाया युक्त शिलाओंपर स्वामीके साथ घूमती-फिरती और क्रीड़ा करती हुई मनोहर अङ्गोवाली रानी सुताराने एक सुनहले रङ्गके मृगको देखकर अपने स्वामीसे कहा,-"प्राणनाथ ! यह मृग तुम मुझे लाकर दो।" यह सुन प्रेम के कारण मोहमें पड़े हुए राजा उसे पकड़ने दौड़े। वह मृग उन्हें देख, उछलता कूदता हुआ भाग गया। इसी समय राजाकी प्रिया सुताराको कुर्कटजातिके सर्पने डंस दिया। अतएव वह बड़े दुःख भरे स्वरमें चिल्ला उठी,-"नाथ ! जल्दी आओ।" उसकी पुकार सुनतेही राजा तत्काल पीछे लौट आये और अपनी पत्नीको विषकी पीड़ासे छटपटाते देखा। उन्होंने रानीको बचानेके लिये तरह-तरहके तन्त्र-मन्त्र किये;पर कोई काम न आया और रानीने राजाके देखते-देखते आंखें बन्द करली,उसका मुँह काला पड़ गया और वह बेहोश हो गयी। यह देख राजाको भी मूर्जा आगई और वे पृथ्वी पर गिर पड़े। बड़ी-बड़ी मुश्किलोंसे जब उन्हें होश हुआ, तब वे इस प्रकार विलाप करने लगे,-“हे देवी समान P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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