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________________ द्वितीय प्रस्ताव। तुम्हारे स्वामी इसकी इच्छा करते हैं, तो मैं पूछता हूँ, कि क्या उन्हें अपना जीवन भारी मालूम पड़ रहा है ? यदि ऐसी बात हो, तो जाओ, अपने स्वामीसे कह दो, कि यदि उनमें कुछ भी बल-पराक्रम हो, तो तुरत यहाँ चले आयें। . ... दूतने राजा अश्वग्रीवके पास पहुँच कर ठीक यही बातें ज्यों-की-त्यों कह सुनायीं। सुनतेही क्रोधमें आकर उसने अपने विद्याधर-वीरोंको शत्रुका संहार करनेके लिये भेजा। स्वामीके भेजे हुए उन वीरोने पो. तमपुर पहुँचकर प्रभुकी प्रेरणाके अनुसार युद्ध करना आरम्भ किया ; परन्तु त्रिपृष्ठने बात-की-बातमें उन सबको परास्त कर दिया। इसके बाद त्रिपृष्ट विद्याधरोंकी सेना साथ लिये हुए अपने ससुरके नगरमें आ पहुँचा। अश्वग्रीव भी अपनी सारी सेना समेत वहीं आधमका। फिर तो दोनों मुख्य सेनाओंमें युद्ध छिड़ गया। विद्याधरगण अपनी विद्या के बलसे पिशाच, राक्षस और सिंह आदिके स्वरूप धारण करने लगे। इससे त्रिपृष्ठकी सेना बहुत डरी और नष्ट सी हो गयी। इतने में त्रिपृष्ठकुमारने रथपर आरूढ़ हो, अपने खेचरोंको साथ लेकर युद्ध करना आरम्भ किया। पहले तो उसने शङ्ख बजाया, जिसकी ध्वनि सुनतेही उसकी सारी सेना सजित हो गयी और शत्रुकी सेना हारने लगी। यह देख, अश्वनीव भी अपने रथपर सवार हो, त्रिपृष्ठके सामने आकर युद्ध करने लगा। अश्वग्रीवने जिन-जिन दिव्य अत्रोंका प्रयोग किया, उन सबको त्रिपृष्ठने बात-की-बातमें उसी तरह काट डाला, जैसे सूर्य अन्धकारका नाशकर देता है। अब तो अश्वग्रीवने ऊबकर त्रिपृष्ठपर एक भयङ्कर चक्र चलाया। वह चक्र त्रिपृष्ठ की छातीसे आकर चिपक गया और अश्वग्रीवके पास न लौटकर वहीं पड़ा रहा। त्रिपृष्ठने शीघ्रही उस चक्रको अपने हाथमें लेकर अश्वग्रोषसे कहा,-रे अश्वग्रीव ! तू अभी मेरे सामने हाथ जोड़ कर प्रणाम कर और घर जाकर सुखसे जीवन व्यतीत कर।" यह सुन, अश्यग्रीवने कहा,-"वेरीको प्रणाम करनेसे तो मर जाना कहीं अच्छा है।" . यह सुन, त्रिपृष्ठने उसपर वह थक P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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